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हल्दी और उसका व्यापारिक महत्त्व

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
April 10, 2019
in हिन्दी
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हल्दी और उसका व्यापारिक महत्त्व
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हल्दी का उपयोग प्राचीनकाल से विभिन्न रूपों में किया जाता आ रहा हैं, क्योंकि इसमें रंग महक एवं औषधीय गुण पाये जाते हैं। हल्दी में जैव संरक्षण एवं जैव विनाश दोनों ही गुण विद्यमान हैं, क्योंकि यह तंतुओं की सुरक्षा एवं जीवाणु (वैक्टीरिया) को मारता है। इसका उपयोग औषधीय रूप में होने के साथ-साथ समाज में सभी शुभकार्यों में इसका उपयोग बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है। वर्तमान समय में प्रसाधन के सर्वोत्तम उत्पाद हल्दी से ही बनाये जा रहे हैं। हल्दी में कुर्कमिन पाया जाता हैं तथा इससे एलियोरोजिन भी निकाला जाता हैं। हल्दी में स्टार्च की मात्रा सर्वाधिक होती हैं। इसके अतिरिक्त इसमें 13.1 प्रतिशत पानी, 6.3 प्रतिशत प्रोटीन, 5.1 प्रतिशत वसा, 69.4 प्रतिशत कार्बाेहाइड्रेट, 2.6 प्रतिशत रेशा एवं 3.5 प्रतिशत खनिज लवण पोषक तत्व पाये जाते हैं। इसमें वोनाटाइन आॅरेंज लाल तेल 1.3 से 5.5 प्रतिशत पाया जाता हैं। भारत विश्व में सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक देश है। भारत में हल्दी का विभिन्न रूपों में निर्यात जापान, फ्रांस यू.एस.ए., यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, नीदरलैंड, सउदी अरब एवं आस्ट्रेलिया को किया जाता है। म.प्र. में हल्दी का क्षेत्र बहुत कम है, परंतु यहां पर इसके क्षेत्र एवं उत्पादन वृद्धि की प्रबल संभावना हैं।

हल्दी का औषधीय गुण

हल्दी का उपयोग कफ विकार, त्वचा रोग, रक्त विकार, यकृत विकार, प्रमेह व विषम ज्वर मे लाभ पहुँचाता है हल्दी को दूध में उबालकर गुड के साथ पीने से कफ विकार दूर होता है। खांसी में इसका चूर्ण शहद या घी के साथ चाटने से आराम मिलता है। चोंट, मोंच ऐंठन या घाव पर चूना, प्याज व पिसी हल्दी का गाढा घोल हल्का गर्म करके लेप लगाने से दर्द कम हो जाता है। पिसी हल्दी का उबटन लगाने से त्वचा रोग दूर होते है, साथ ही शरीर कान्तिमान हो जाता है।

ताजी गांठों से हल्दी तैयार करना

घरेलू स्तर पर कच्ची हल्दी से हल्दी पाउडर बनाने की विधि- हल्दी की गांठों को खुदाई के पश्चात् कन्दों से जडों को साफ कर लिया जाता है। फिर कन्दों को पानी से अच्छी तरह धोकर मिट्टी साफ कर ली जाती है। इसके बाद कन्दों को लोहे की कडाही या मिट्टी के घडों में उबालते है। उबालते समय पानी में थोडा गाय का गोबर या खाने वाला चूना (20 ग्राम प्रति 10 ली. पानी की दर से) डालें ऐसा करने से हल्दी का रंग अधिक आकर्षक हो जाता है। कन्दों को तब तक उबाले जब तक कि कन्द मुलायम न पड जाये। उबली हुई गांठों को ठण्डा होने के लिए 2-3 घण्टों के लिए साफ फर्श पर बिखेर दे तथा इसके पश्चात गांठों से बाहरी छिलका साफकर गांठों को कुचल दें एवं 7-8 दिन के लिए धूप में सुख लें।

सी.एफ. टी.आर. विधि

गैलेबेनाइज्ड लोहे के बर्तन में 0.1% सोडियम कार्बोनेट/बाई कार्बोनेट के घोल में 1-1.5  घंटे तक उबालकर। एक घोल को अधिकतम दो बार प्रयोग करें। रसायनिक विधि द्वारा क्योरिंग करने से प्रकन्द का रंग आकर्षक नारंगी-पीलापन रंग का विकसित होता है। इस विधि में मातृ व नये कंदों को अलग-अलग उबालना चाहिए। उबले कंदों को धूप में 10-15 दिनों तक सुखा लेना चाहिए।

पॉलिश करना

इन सूखे कूड़े कंदों को नाचने वाले ड्रम में हल्दी पाउडर डालकर पॉलिश कर लिया जाता है। जिसके द्वारा कंद पर अब आकर्षक बाहरी पतर चढ़ जाता है।

हल्दी बनाने की उन्नत व व्यापारिक विधि

खुदाई के बाद प्रकन्दों को धोकर साफ कर लेते है और प्रकंदों को 2-3 दिनों तक सुखाते है। इसके बाद 45-60 मिनट तक पानी में उबालते है। प्रकन्दो के उबल जाने पर हल्दी की एक विशेष गन्ध आने लगती है तथा पानी की सतह पर झाग भी दिखाई देने लगता है। उबतालते समय खाने वाला सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिला देते है। इससे हल्दी का रंग और भी अच्छा हो जाता है।

प्रकन्दों का कम उबालने से हल्दी अच्छी नही होती है तथा ज्यादा उबालने से रंग बिगड जाता है। उबले हुये प्रकन्दो को धूप में तब तक सुखाये जब तक तोडने पर उसमें से खट की आवाज न आने लगे। हल्दी का प्राकृतिक रंग बना रहने के  लिए इसे मोटी परतों (5-6 सेमी.) में सुखाना तथा प्रकन्दो को आकर्षक बनाने के लिए इनकी रंगाई आवश्यक होती है। 100 किग्रा. हल्दी की रंगाई के लिए 40 ग्राम फिटकरी, 2 किग्रा. हल्दी का बारीक पाउडर, 140 मिली. अरण्डी का तेल, 30 ग्राम खाने का सोडा तथा 30 मिली. नमक का तेजाब का मिश्रण बनाकर रंगाई करते है। इस तरह रंगी गई हल्दी को सुखाकर भण्डारित करते है।

हल्दी का बीज के लिए भण्डारण

बीज के लिए हल्दी का भण्डारण गड्ढा बनाकर करते है इसके लिए प्रति कुन्टल हल्दी के भण्डारण के लिए 1 घन मी. (1मी. गहरा 1 मी. चैडा) गड्ढा ऐसी ऊँची जगह पर खोदते है जहां पानी नही ठहरता हो खोदी गई हल्दी को मैकोजेब (2.5 ग्राम) $ कार्बेन्डेजिम (1ग्राम) प्रति ली. पानी की दर से बनाये गये घोल में आधा घण्टा उपचारित करने के बाद छाया में 1 घण्टे के लिए फैलाकर सुखाते है गड्ढे के नीचे तथा दीवार की सतह पर सूखी हल्दी की पत्तियां डाल देते है।

गड्ढे को ऊपर से लकडी के तख्ते से ढक देते है तख्ते में छोटा सा छेद कर देते है तथा छेद को छोडकर शेष भाग को मिट्टी से ढककर गोबर से लेप कर देते है। इस तरह बीज को 4 से 5 माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

पैदावार

कच्ची हल्दी की पैदावार औसतन 80-90 कुन्टल प्रति एकड प्राप्त होती है जो सुखाने पर 20-25 कुन्टल रह जाती है।

आर्थिक पक्ष

कच्ची हल्दी की औसत उपज 80-90 कु./एकड के उत्पादन में कुल लागत लगभग 60,000 रूपये की आती है। 84 कुन्टल हल्दी से आय 16800 रूपये (2000 रूपये प्रति कु.) आती है। अतः शुद्ध लाभ 108000 रूपये प्रति एकड प्राप्त होती है।

हल्दी का बीज के लिए भण्डारण- बीज के लिए हल्दी का भण्डारण गड्ढा बनाकर करते है इसके लिए प्रति कुन्टल हल्दी के भण्डारण के लिए 1 घन मी. (1मी. गहरा 1 मी. चैडा) गड्ढा ऐसी ऊँची जगह पर खोदते है जहां पानी नही ठहरता हो खोदी गई हल्दी को मैकोजेब (2.5 ग्राम) $ कार्बेन्डेजिम (1ग्राम) प्रति ली. पानी की दर से बनाये गये घोल में आधा घण्टा उपचारित करने के बाद छाया में 1 घण्टे के लिए फैलाकर सुखाते है गड्ढे के नीचे तथा दीवार की सतह पर सूखी हल्दी की पत्तियां डाल देते है।

 

गड्ढे को ऊपर से लकडी के तख्ते से ढक देते है तख्ते में छोटा सा छेद कर देते है तथा छेद को छोडकर शेष भाग को मिट्टी से ढककर गोबर से लेप कर देते है। इस तरह बीज को 4 से 5 माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

 

सदर सत्रासाठी आपण ही आपल्या कडील माहिती / लेख इतर शेतकऱ्यांच्या सोयीसाठी krushisamrat1@gmail.com या ई-मेल आयडी वर किंवा 8888122799 या नंबरवर पाठवू शकतात. आपण सादर केलेला लेख / माहिती आपले नाव व पत्त्यासह प्रकाशित केली जाईल.

 

 

Tags: Turmeric and its commercial importanceहल्दी और उसका व्यापारिक महत्त्व
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