कपास की फसल में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग कैसे करे और कितनी मात्रा में करे?
खाद एवं उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करनी चाहिए यदि मृदा में कर्वानिक पदार्थो की कमी हो तो खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की खाद सड़ी खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए इसके साथ साथ 60 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 30 किलो ग्राम फास्फोरस तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए तथा पोटाश की संस्तुत नहीं की गई है नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा का प्रयोग खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई पर करना चाहिए शेष नाइट्रोजन की मात्र का प्रयोग फूल प्रारम्भ होने पर व आधिक फूल आने पर जुलाई माह में दो बार में प्रयोग करना चाहिएI l
कपास की फसल में निराई गुड़ाई कब करे हमारे किसान भी और खरपतवारो पर किस प्रकार नियंत्रण करे?
पहली सूखी निराई गुड़ाई पहली सिचाई अर्थात 30 से 35 दिन से पहले करनी चाहिए इसके पश्चात फसल बढ़वार के समय कल्टीवेटर द्वारा तीन चार बार आड़े बेड़े गुड़ाई करनी चाहिए फूल व गूलर बनने पर कल्टीवेटर से गुड़ाई नहीं करनी चाहिए इन अवस्थाओ में खुर्पी द्वारा खरपतवार गुड़ाई करते हुए निकलना चाहिए जिससे की फूलो व गुलारो को गिरने से बचाया जा सकेI
कपास की छटाई (प्रुनिग) कब और कैसे करनी चाहिए?
अत्याधिक व असामयिक वर्षा के कारण सामान्यता पौधों की ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो 1.5 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पौधों की ऊपर वाली सभी शाखाओ की छटाई, सिकेटियर या (कैची) के द्वारा कर देना चाहिए इस छटाई से कीटनाशको के छिडकाव में आसानी रहती है l
कपास की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण हम किस प्रकार करे ?
कपास में शाकाणु झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाइट) तथा फफूंदी जनित रोग लगते है, इनके बचाव के लिए खड़ी फसल में वर्षा प्रारम्भ होने पर 1.25 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50% घुलनशील चूर्ण व् 50 ग्राम एग्रीमाईसीन या 7.5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन प्रति हेक्टर की दर से 600 -800 लीटर पानी में घोलकर दो छिडकाव 20 से 25 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए साथ ही उपचारित बीजो का ही बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिएI
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