गेहूं-सरसों, चना, मटर, उड़द और मूंग जैसी तमाम अनाजों की कीमतें इस साल बढ़ने की संभावना है। कीमतों में बढ़ोत्तरी के पीछे दो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं।
इसका पहला कारण यह है, कि वर्तमान फसल वर्ष में पिछले साल के मुकाबले 27 लाख हेक्टेयर कम खेती हुई है। दूसरी वजह मौसम को माना जा रहा है। इस वर्ष देश के उत्तरी राज्यों में रूक-रूक कर बेमौसमी बारिश हो रही है। यही नहीं बारिश के साथ चलने वाली तेज़ हवाओं और कुछ स्थानों पर होने वाली ओलावृष्टि ने भी देश की कृषि को काफी नुकसान पहुँचाया है।
पिछले साल भारत के किसानों ने 35.29 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई/रोपाई की थी।
धान और गेहूं प्रमुख खाद्यान्न अनाज हैं। ऐसे में चावल की कीमतों के ऊपर जाने में कोई आश्चर्य नहीं होगा। गेहूं तकरीबन बीते साल जितना ही बोया गया है। बीते फसल वर्ष में 299.84 लाख हेक्टेयर में और इस बार 297.54 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुआई हुई है। मोटे अनाजों की बुआई 15% पीछे है। मक्का 11% जबकि बाजरा 58% कम बोया गया है।
हालांकि उसके बाद सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों से कीमतें काफी नियंत्रण में हैं। लेकिन इस बार चिंता फिर से बढ़ रही है क्योंकि देश में दलहन फसलों की बुआई 6 फीसदी कम हुई है। उपर से मौसम की मार, कीमतों का पेंडुलम हिला सकता है।
बात अगर तिलहन फसलों की करें तो, बुआई के संदर्भ में स्थिति संतोषजनक है क्योंकि तेल वाली फसलें कमोबेस पिछले साल के बराबर बोई गई हैं। लेकिन मौसम की मार से चिंता बढ़ती है। सूर्यमुखी की खेती 44.19 और कुसुम की खेती 34.5% कम हुई है। जबकि तिल को 13.2% ज़्यादा और सरसों को 3.4% अधिक बोया गया है।
इन सबके बीच पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ सहित देश के अधिकांश कृषि राज्यों में रुक-रुक कर बारिश और ओलावृष्टि देखने को मिल रही है। आने वाले दिनों में भी 18 से 22 फरवरी के बीच देश के कई राज्यों में बारिश होने की संभावना है जिससे कृषि पर संकट और बढ़ सकता है।