परिचय :
तोरई का महत्व यहाँ के किसानों के जीवन में इसकी विविध इस्तमाल के कारण और भी जादा बढ़ गया है। आखिर यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य मनाई गयी है। इसके अनुकरण उन्नत प्रभेदों की वैज्ञानिक खेती की तकनीकों को अजमाकर किसानों को आर्थिक लाभ की ओर लाया सकता है।
तोरई की खेती कैसे करें :
तोरई की खेती हिंदुस्तान में एक मुख्य फसल के रूप मे आ चुकी है। यह तोरई बाहरी देशो में भी बहुत अधिक मात्रा में आसनी से पैदा कर सकते है।
जादातर खेती भारतवर्ष के मैदानी सकल भागों में की जाती है। तोरई को भारतभर के हर प्रदेश में उगाया जाता है आज अपने देश में अधिक क्षेत्र में की जाती है। तोरई को आजकल भारतवर्ष के लगभग सभी क्षेत्रों में लीएया जाता है। तोरई की खेती पश्चिमी विदेशों भाग में नहीं की जाती है। इस तोरई के फल लाइन, धारी सहित देखने को मिलते हैं। तोरई पोषक-तत्वों स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त होती है, तोराई पोषक जादा पायी गई हे.
बीमार-आदमी को इसकी सब्जी हल्के भोजन के में दे सकते है। इसके जादा बीजों के द्वारा कम्पनी में तेल बनाने के लिये अथवा सूखे हुए फलों का अंदर का हिस्सा रेशेदार पके हुए फलों को नहाने, सफाई करने तथा जूते के सोल बनाने के काम में किया जाता है। तोराई के पोषक-तत्व पाये जाते हैं- कैल्शियम, कैलोरीज, पोटेशियम, लोहा, कार्बोहाइड्रेटस तथा विटामिन पाया जाता है।
बुवाई का समय :
तोरई की फसल जादा तर मैदानी भागों में साल में दो बार हि कर सकते हे,बरसात वाली फसल के लिए बीजों की बुवाई जून-जुलाई महीने में करते हैं, अथवा गर्मी वाली फसल नवंबर से फरवरी तक बोई जाती है अगेती फसल जिसमें 20 दिसंबर में ही बोए जाते हैं जमाव ना होने पर ठंड से बचाना चाहिए, पहाड़ों पर तोरई 20 अप्रैल से जून तक बोए जाते हैं।
सिंचाई करने का तरीका :
इसकी सिंचाई मौसम पर आधारित है | यदि तोरई की फसल गर्मी में उगाया है तो इसकी सिंचाई 6 से 7 दिन के बाद करें | बरसात की फसलो को जादा सिंचाई की जरुरुत नहीं होती| इसकी सिंचाई बरसात के दिनो पर ही निर्भर होती है खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :-
तोरई की खेती में उगे हुए छोटे – छोटे खरपतवार को जड़ से उखाड़कर निकाल ना चाहिए| इसके लिए केवल 2 से 3 बार हल्की निराई – गुड़ाई करनी चाहिए |
बीमारियाँ तथा रोकथाम :
- चूर्णी फफूदी
पहचान -इस बीमारी का अन्दाज पत्तियों एवं तनो पर हिजादा दिखाई देता हे, पुरानी पत्तियों पर सफेद रंग के गोल धब्बेड दिखाई देता हे, धीरे-धीरे आकार और संख्या में बढ़कर पूरी पत्तियों पर छा जाते हैं पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा जमा हुआ दिखाई देता है, रोग का अधिक प्रकोप पत्तियों पर दिखता हे, हरा रंग खतम होने लगता है, यह पीली पड़ कर अंत में भूरी हो जाती हैं.
रोकथाम
लक्षण दिखाई जाते है, सडा हुआ भाग को निकाल दें। 0.06 % केराथेन के घोल का 21 दिन बाद के अंतर पर तीन छिड़काव करें।
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