• About
  • Advertise
  • Privacy & Policy
  • Contact
Friday, February 26, 2021
  • Login
Krushi Samrat
  • होम
  • शेती
  • शेतीपुरक उद्योग
  • शासकीय योजना
  • यशोगाथा
  • कायदा
  • अवजारे
  • तंत्रज्ञान
  • हवामान
  • व्हिडिओ
  • हिन्दी
No Result
View All Result
  • होम
  • शेती
  • शेतीपुरक उद्योग
  • शासकीय योजना
  • यशोगाथा
  • कायदा
  • अवजारे
  • तंत्रज्ञान
  • हवामान
  • व्हिडिओ
  • हिन्दी
No Result
View All Result
Krushi Samrat
No Result
View All Result
Home हिन्दी

बैंगन की वैज्ञानिक खेती

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
March 21, 2019
in हिन्दी
0
बैंगन की वैज्ञानिक खेती
Share on FacebookShare on WhatsApp

परिचय

बैंगन सालो भर पैदा होने वाली सब्जी है। इसमें पोषक तत्व के साथ-साथ औषधीय, गुण भी मौजूद है। खासकर उजला बैंगन डायबिटीज के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होता है। अगर किसान भाई इसकी खेती में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएँ तो अच्छी पैदावार लेकर पैसा कमा सकते है।

 

जलवायु

 

बैंगन को लम्बे गर्म मौसम कि आवश्यकता होती है। अत्यधिक सर्दियों में इस फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।

 

भूमि

 

उपजाऊ एवं पूर्ण जल-निकास वाली भूमि अच्छी पैदावार के लिए अति आवश्यक है। यह एक ठोस पौधा है और सभी तरह के मिट्टी पर पैदा किया जा सकता है परन्तु दोमट और हल्की भारी मिट्टी इसके लिए काफी उपयुक्त है।

 

उन्नत प्रभेद

 

इसके प्रभेदों को दो भागों में बांटा जा सकता है। सामान्य और हाईब्रिड बैंगन की अच्छी पैदावार हेतु मुख्य सामान्य उन्नत प्रभेद हैं पूसा परपल लौंग, राजेन्द्र बैंगन-2, राजेन्द्र अन्नपूर्णा, पंत बैंगन, पंत सम्राट, पंत ऋतुराज, अरकानिधि, सोनाली, कचबचिया इत्यादि।

मुख्य हाईब्रिड प्रभेद है पूसा अनमोल, अर्कानवनीत, पूसा हाईब्रिड-5, पूसा हाईब्रिड-6, एन।डी।बी।एच।-1 इत्यादि।

बैंगन की सामान्य प्रभेद से प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल फल का उत्पादन होता है।

हाईब्रिड प्रभेदों कि उत्पादन क्षमता बहुत अधिक होती है परन्तु किसान भाई हाईब्रिड बीज का प्रयोग एक पैदावार लेने के बाद न करें क्योंकि इसके बाद इसकी उपज क्षमता आधी रह जाती है और निरंतर कम होती चली जाती है।

 

बीज दर एवं बोआई

 

करीब 375 से 500 ग्राम बीज एक हेक्टेयर के लिए जरूरत पड़ता है। बीज की बोआई के लिए तीन मुख्य समय इस प्रकार हैं:

  1. रबी बैंगन/फसल के लिए: जून महीनें में बीज की बोआई और जुलाई महीने में बिचड़ों का प्रतिरोपण करनी चाहिए।
  2. गर्मा बैंगन के लिए: बीज की बोआई नवम्बर माह में एवं बिचड़ों का प्रतिरोपण जनवरी-फरवरी माह में करनी चाहिए।
  3. बरसाती बैंगन के लिए: बीज की बोआई मार्च महीने में और बिचड़ों का प्रतिरोपण अप्रैल माह में करनी चाहिए।

बीज की बोआई करने के पहले किसान यह सुनिश्चित कर लें कि व प्रभेद किस मौसम में ज्यादा उपयुक्त है।

 

बिचड़ों का प्रतिरोपण

 

चार से छ: सप्ताह के बिचड़ों का प्रतिरोपण करना चाहिए। गर्म मौसम के लिए 75 x 60 सेंमी। पर तथा रबी मौसम के लिए 60 x 45 सेंमी। की दूरी पर बिचड़ों का प्रतिरोपण करना चाहिए।

 

खाद एवं उर्वरक

 

बैंगन की फसल को 120-150 किलोग्राम नेत्रजन, 80 किलोग्राम स्फुर एवं 80 किलोग्राम पोटाश किआवश्यकता होती है। इसके लिए 200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद या 30 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट, 5 क्विंटल नीम की खल्ली, 50 किलोग्राम डी।ए।पी। 50 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 15 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 10 किलोग्राम बोरैक्स (सोहागा) खेत की तैयारी के समय ही डाल देना चाहिए। 100 किलोग्राम यूरिया रोपाई के एक माह बाद उपरिवेशन के तौर पर देना चाहिए।

निकाई-गुड़ाई एवं सिंचाई निकाई-गुड़ाई एवं बराबर नमी बना रहे इसके लिए हल्की सिंचाई करते रहना आवश्यक है।

 

फलों की तुडाई

 

जब फल पूर्ण रूप से अपना आकार और रंग ग्रहण कर लें तो इसकी तुड़ाई करनी चाहिए।

बैंगन में समेकित रोग एवं कीट प्रबन्धन

बैंगन में कई तरह के रोग एवं कीटों का प्रकोप होता है जिसके कारण इस फसल को काफी नुकसान पहुंचता है। खासकर फल-छेदक और तना छेदक का प्रकोप इतना ज्यादा होता है कि  इससे निपटने के लिए किसान अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। फलस्वरूप, मित्रकीटों की जनसंख्या तो घटती ही है साथ ही प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने के चलते लक्षित कोई भी कीट नहीं मरते। वायु प्रदुषण, मृदा-प्रदुषण फैलता है सो अलग। इस तरह से उत्पादित बैंगन भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अत: पौधा संरक्षण के लिए समेकित प्रबन्धन पद्धति को अपनाया जाए तो इन समस्याओं से निजात भी मिल जाएगा और स्वास्थ्य-वर्धक बैंगन का उत्पादन भी होगा।

 

खास कीट और रोकथाम

तना व फल छेदक : इस कीट की इल्ली अंडे से निकलने के बाद तने केऊपरी सिरे से तने में घुस जाती है। कीट के कारण तना मुरझा कर लटक जाता है व बाद में सूख जाता है। फल आने पर इल्लियां उन में छेद बना कर घुस जाती हैं और अंदर ही अंदर फल खाती हैं। उन के मल से फल सड़ जाते हैं। नियंत्रण के लिए रोग लगे फलों को तोड़ कर नष्ट करें। इल्लियों को इकट्ठा कर के नष्ट करें।

कीटों का हमला होते ही ट्राइजोफास 40 ईसी 750 मिलीलीटर या क्वीनालफास 25 ईसी 1।5 लीटर दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। फल वाली दशा में फल तोड़ने के बाद ही कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए।

जैसिड : ये कीड़े पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं। बचाव के लिए खेत को खरपतवार मुक्त रखें ताकि कीटों के घर खत्म हो जाएं। शुरू की दशा में 5 मिलीलीटर नीम का तेल व 2 मिलीलीटर चिपचिपे पदार्थ का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। खड़ी फसल में आक्सी मिथाइल डिमेटान मेटासिस्टाक्स या डायमेथोऐट रोगर की 1।5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।

लाल मकड़ी : लाल मकड़ी माइट का रंग लाल होता है। इस के शिशु और प्रौढ़ दोनों नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट का प्रकोप मुलायम पत्तियों पर ज्यादा होता है और इन की संख्या पत्तियों की निचली सतह पर ज्यादा होती है। ये पौधों की कोमल पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से हरा पदार्थ खत्म हो जाता है और सफेद धब्बे जैसे दिखाई देने लगते हैं। पौधों की बढ़वार रुक जाती है। कीट का हमला अधिक होने पर सल्फर की 2 से 2।5 ग्राम या सल्फेक्स नामक  दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए।

सफेद मक्खी : ये कीट पौधों की मुलायम पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से वे पीली पड़ कर सूख जाती हैं। साथ ही ये कीट विषाणु जनित रोगों का फैलाव भी रोगी पौधे से स्वस्थ पौधे में करते हैं। शुरू की दशा में नीम की निबौली के सत के 5 फीसदी के घोल का छिड़काव करना चाहिए। रोकथाम के लिए इथोफेनाप्राक्स 10 ईसी या इथियान 50 ईसी या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ईसी की 1 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

नेमेटोड सूत्र कृमि : इस के कारण पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं। पौधे बौने रह जाते हैं और कमजोर दिखाई पड़ते है। पत्तियां हरीपीली हो कर मुरझा जाती हैं। इस से पौधे नष्ट तो नहीं होते, लेकिन गांठों के सड़ने पर सूख जाते हैं। जहां पर इस के प्रकोप का खतरा हो, वहां 25 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर मिट्टी में भलीभांति मिला देनी चाहिए। नेमागान 12 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से ले कर भूमि का पौधे रोपने से 3 हफ्ते पहले शोधन करें। रोगी पौधों को खेत से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।

खास रोग व इलाज :

आर्द्र गलन : यह बीमारी पौधशाला में अधिक लगती है। इस से पौधे जड़ों के पास में सड़ने लगते हैं। यह रोग फाइटोपथेरा पीथियम स्क्लेरोशियम फ्युजेरियम की विभिन्न प्रजातियों से होता है। रोकथाम के लिए बीजों का थीरम की 2।5 से 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।

थीरम या कैप्टान की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर 7 से 11 दिनों के अंतर पर 2 बार क्यारी में छिड़कें। बीजों को 50 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर 30 मिनट तक उपचारित कर के बोना चाहिए। इस बीमारी को रोकने के लिए ट्राईकोडर्मा की 4 से 5 ग्राम मात्रा से 1 किलोग्राम बीजों का शोधन करें। ट्राइकोडर्मा की 10 से 20 ग्राम मात्रा 1 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खाद में मिला कर 1 वर्गमीटर खेत के शोधन के लिए इस्तेमाल करें।

फोमाप्सिस झुलसा : इस के लक्षण पत्ती, फल व तने पर दिखते हैं। पत्ती पर गोल धब्बे, तने का सूखना व फल का सड़ना इस के लक्षण हैं। संक्रमित क्षेत्र में छोटेछोटे बिंदु के समान उभरे लक्षण दिखते हैं।

इस के लिए रोग रहित किस्मों का चुनाव करें और बीजों को बावस्टीन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। खेत में फल आने से पहले समय पर ही मेंकोजेब 0।25 फीसदी 2।5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडाजिम 0।1 फीसदी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव 10 दिनों के अंतर पर करें। बैगन का छोटी पत्ती रोग : इस रोग का प्रकोप बैगन की पत्तियों पर होता है, जिस में पत्तियां काफी छोटी हो जाती हैं। इस में पौधों की शाखाएं छोटी रह जाती हैं और पत्तियों का झुंड बन जाता है। पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं। फूल व फल नहीं बनते हैं।

इस रोग का फैलाव कीटों द्वारा ग्रसित पौधों से स्वस्थ पौधे में तेजी से होता है। लिहाजा रोग को फैलाने वाले रस चूसक कीटों की रोकथाम के लिए डाईमेथाएट 30 ईसी या आक्सीडेमेटान मिथाइन 25 ईसी की 1।5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। पौधों की रोपाई से पहले जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 100 पीपीएम यानी 1 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी के घोल में भिगोना चाहिए और रोपाई के 4 से 5 हफ्ते बाद दवा का छिड़काव करना चाहिए। प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। रोगरोधी जातियां जैसे पूसा परपल, क्लस्टर, मंजरी गोटा, अर्का शील व बनारस जाईट को लगाना चाहिए।

जीवाणु उकठा रोग : यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है, जिस में बाद में पूरी पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं। तने को काट कर देखने पर दूधिया रंग का लसलसा पदार्थ दिखाई देता है। फसलचक्र में सरसों कुल की सब्जियां जैसे फूलगोभी लगानी चाहिए। पौधे की जड़ों को रोपाई से पहले स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा के 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबाने के बाद रोपाई करनी चाहिए। उकठा रोधी या सहनशील जातियां जैसे पंत सम्राट लगाएं। कार्बेंडाजिम की 1 ग्राम मात्रा या 2।5 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करने से भी फायदा होता  है।

 

 

सदर सत्रासाठी आपण ही आपल्या कडील माहिती / लेख इतर शेतकऱ्यांच्या सोयीसाठी krushisamrat1@gmail.com या ई-मेल आयडी वर किंवा 8888122799 या नंबरवर पाठवू शकतात. आपण सादर केलेला लेख / माहिती आपले नाव व पत्त्यासह प्रकाशित केली जाईल

Tags: Scientific farming of eggplantबैंगन की वैज्ञानिक खेती
Team Krushi Samrat

Team Krushi Samrat

Related Posts

मसूर उत्पादन की उन्नत तकनीक
हिन्दी

मसूर उत्पादन की उन्नत तकनीक

January 31, 2020
ठंड के मौसम में पशुपालन कैसे करें ?
शेतीपुरक उद्योग

ठंड के मौसम में पशुपालन कैसे करें ?

December 24, 2019
फसलों के साथ पोपलर (Populus) वृक्ष की खेती
हिन्दी

फसलों के साथ पोपलर ( Populus ) वृक्ष की खेती

November 22, 2019

About us

Krushi Samrat

कृषी सम्राट हा शेतकऱ्यांसाठी शेतकरी पुत्राने सुरु केलेला एक समूह आहे. आपल्या शेतकऱ्यांना जगभरातील शेतीविषयी माहिती मोफत मिळावी हाच यामागचा एक उद्देश आहे.

Browse by Category

  • Uncategorized
  • अवजारे
  • आयुर्वेदिक नुस्खे
  • कायदा
  • कृषीसम्राट सल्ला
  • तंत्रज्ञान
  • प्रेरणा
  • प्रेरणादायक गोष्टी
  • बातम्या
  • यशोगाथा
  • व्हिडिओ
  • शासकीय योजना
  • शेती
  • शेतीपुरक उद्योग
  • हवामान
  • हिन्दी

Recent News

लसून लागवडीसाठी जाणून घ्या अनुकूल हवामान व विविध वाण

लसून लागवडीसाठी जाणून घ्या अनुकूल हवामान व विविध वाण

October 22, 2020
शाश्वत शेतीसाठी मसाला पिके व सुगंधी वनस्पतीची लागवड करावी

शाश्वत शेतीसाठी मसाला पिके व सुगंधी वनस्पतीची लागवड करावी

October 22, 2020
  • About
  • Advertise
  • Privacy & Policy
  • Contact

© 2020 Powered by Tech Drift Solutions.

No Result
View All Result
  • होम
  • शेती
  • शेतीपुरक उद्योग
  • शासकीय योजना
  • यशोगाथा
  • कायदा
  • अवजारे
  • तंत्रज्ञान
  • हवामान
  • व्हिडिओ
  • हिन्दी

© 2020 Powered by Tech Drift Solutions.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In