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Home हिन्दी

मूली की खेती

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
January 10, 2019
in हिन्दी, शेती
0
मूली की खेती
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कहते हैं कि इंसान की सेहत ही सब कुछ होती है। यदि इंसान स्वस्थ रहता है तो सभी काम आसानी से कर सकता है। सब्जियां कुदरत की ऐसी देन है जिसकी हमें हर हाल में जरूरत है। ये हमारे शरीर को उर्जा प्रदान करती है, ऐसी ही एक सब्जी है मूली। इसको हम सलाद के रूप में अचार, दवा आदि के रूप में इस्तेमाल करते है। शहरों के बड़े-बड़े होटलों में जैविक मूली को सलाद के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी है।

मूली कई तरीके से किसानों को अच्छे पैसे कमाने का मौका देती है। यह एक ऐसी फसल है जिससे किसान को कम समय में अधिक कमाई हो सकती है। भारत में मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में इसकी खेती की जाती है। इनके अलावा और भी कई राज्यों में मूली की खेती की जाती है। अच्छी पैदावार लेने के लिए मूली खेती को सही तरीके से करना अनिवार्य है।

जलवायु : शुरुआत में मूली की खेती करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि इसके लिए कौन-सी जलवायु उपयुक्त है। मूली की बुवाई करने के लिए ठन्डे मौसम की आवश्यकता पड़ती है वैसे यह पूरे साल उगाई जाती है लेकिन यह ठन्डे मौसम की फसल है इसके बढ़वार हेतु 10 से 15 डिग्री सेल्सियस अच्छा तापक्रम होता है। अधिक तापक्रम पर जड़े कड़ी तथा कड़वी हो जाती है।

भूमि : मूली वैसे तो मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाको में बोई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में मूली की बुवाई सितम्बर से जनवरी तक की जाती है। जबकि पहाड़ी इलाकों में यह अगस्त तक बोई जाती है। मूली का अच्छा उत्पादन लेने के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिटटी अच्छी होती है। इसकी बुवाई के लिए मिटटी का पी. एच. मान 6.5 के निकट अच्छा होता है।

खेत की तैयारी

मूली की बुवाई करने से पहले खेत की 5-6 जुताई कर तैयार किया जाना अनिवार्य है। मूली के लिए गहरी जुताई कि आवश्यकता होती है क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में गहरी जाती है गहरी जुताई के लिए ट्रैक्टर या मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें| इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाकर जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाए|

पोषण प्रबंधन

मूली की अच्छी पैदावार लेने के लिए 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय देनी चाहिए| इसी के साथ ही 80 किलोग्राम नाईट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए| नाईट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले तथा नाईट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में देना चाहिए जिसमे नाईट्रोजन 1/4 मात्रा शुरू की पौधों की बढ़वार पर तथा 1/4 नाईट्रोजन की मात्रा जड़ों की बढ़वार के समय देना चाहिए|

मुख्य प्रजातियाँ

अच्छा उत्पादन लेने के लिए जरुरी है अच्छे बीज का चुनाव करना| मूली कुछ अच्छी प्रजातियां काफी प्रचलित हैं जैसे जापानी सफ़ेद, पूसा देशी, पूसा चेतकी, अर्का निशांत, जौनपुरी, बॉम्बे रेड, पूसा रेशमी, पंजाब अगेती, पंजाब सफ़ेद, आई| एच| आर1-1 एवं कल्याणपुर सफ़ेद है। शीतोषण प्रदेशो के लिए रैपिड रेड, ह्वाइट टिप्स, स्कारलेट ग्लोब तथा पूसा हिमानी अच्छी प्रजातियां है। इनमें से कुछ प्रजातियों की बुवाई अलग-अलग समय पर की जाती है। जैसे कि पूसा हिमानी की बुवाई दिसम्बर से फरवरी तक की जाती है तथा पूसा चेतकी प्रजाति को मार्च से मध्य अगस्त माह तक बोया जाता है बुवाई मेड़ों तथा समतल क्यारियो में भी की जाती है। लाइन से लाइन या मेड़ों से मेंड़ो की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा उचाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है बुवाई 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए|

बीजोपचार

बुवाई करने के लिए मूली का बीज 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। मूली के बीज का शोधन 2|5 ग्राम थीरम से एक किलोग्राम बीज की दर से उप शोधित करना चाहिए| या फिर 5 लीटर गौमूत्र प्रतिकिलो बीज के हिसाब से बीजोपचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

जल प्रबंधन

मूली की फसल में पहली सिंचाई तीन चार पत्ती की अवस्था पर करनी चाहिए| मूली में सिंचाई भूमि के अनुसार कम ज्यादा करनी पड़ती हैI सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए|

खरपतवार प्रबंधन

मूली की जड़ो में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए| जब जड़ों की बढ़वार शुरू हो जाए तो एक बार मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए| खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर 3|3 लीटर पेंडामेथलीन 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए|

रोग प्रबंधन

मूली में व्हाईट रस्ट, सरकोस्पोरा कैरोटी, पीला रोग, अल्टरनेरिया पर्ण, अंगमारी रोग लगते हैI इन्हे रोकने के लिए फफूंद नाशक दवा डाईथेन एम 45 या जेड 78 का 0|2% घोल से छिड़काव करना चाहिए| या फिर 0|2% ब्लाईटेक्स का छिड़काव करना चाहिए|

कीट प्रबंधन

मूली की फसल में रोग के साथ-साथ कीटो का भी प्रकोप होता है। मूली में मांहू, मूंगी, बालदार कीड़ा, अर्धगोलाकार सूंडी, आरा मक्खी, डायमंड बैक्टाम कीट लगते है। इनकी रोकथाम हेतु मैलाथियान 0|05% तथा 0|05 % डाईक्लोरवास का प्रयोग करना चाहिए|

फसल कटाई

मूली की फसल 40 से 50 दिन में तैयार हो जाती है। जब लगे कि मूली की जड़ खाने लायक हो गयी है उस समय इसकी कटाई शुरू कर दे|

उपज 
मूली उपज भूमि की उर्वरा शक्ति उसकी उगाई जाने वाली प्रजातियों और फसल की देख-भाल पर निर्भर करती है यूरोपियन प्रजातियों से 80-100 क्विंटल और एशियाई  प्रजातियों से 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है।

बाजार :

किसान फसल का उत्पादन तो कर लेते हैं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या उत्पाद को बेचने की, इसलिए उनको बाजार की सही जानकारी होना आवाश्यक है। किसानों को मूली जैसी फसल अच्छे दामों में बेचने के लिए सबसे बेहतर विकल्प क्षेत्रीय मंडी है। अपना उत्पाद बेचने से पहले किसान फसल का मूल्य अवश्य पता कर ले| सामान्य तौर पर मूली 500 से 1200 रूपये प्रति कुंतल की दर से बिक जाती है। यदि सामान्य रूप से खेत से 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी उत्पादन निकलता है तो कम से कम मूल्य होने पर भी किसान 100000 रूपये प्रति हेक्टेयर तक आसानी से कमा सकता है।

डायरेक्ट मार्केटिंग : यदि किसान के खेत, शहर के नजदीक है तो वो अपनी फसल को रिटेल स्टोर में बेच सकते है। आजकल शहरों में सब्जियों और फलों के रिटेल स्टोर खोले जा रहे हैं, जिनके द्वारा शहरों में सब्जी की पूर्ती की जाती है। ऐसे रिटेल स्टोर में मूली को बेचकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं| इसमें बिचौलिए का कोई झंझट नहीं होता है।

इस सत्र के लिए हम किसानों की सुविधा के लिए, यह जानकारी अन्य किसानों की सुविधा के लिए लेख आप krushisamrat1@gmail.com ई-मेल आईडी या 8888122799 नंबर पर भेज सकते है, आपके द्वारा सबमिट किया गया लेख / जानकारी आपके नाम और पते के साथ प्रकाशित की जाएगी।

 

Tags: Radish farmingमूली की खेती
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