प्लास्टिक ट्रे अथवा प्लग ट्रे क्या है ?
प्लग ट्रे प्लास्टिक से निर्मित ट्रे नुमा आकार की होती है जिसमें अनेक प्लग (गहरे सेल) बने होते हैं। प्रत्येक प्लग (सेल) में एक पौध उगाई जाती है। इनमें मृदा विहीन माध्यम से जैसे पीट, परलाईट रॉकबूल, रेत एवं कोकोपिट आदि का उपयोग किया जाता है, क्योंकि इनमें रोग लगने की संभावना न के बराबर होती है तथा इनकी जल को सोखने की क्षमता उत्तम होती है एवं ये अनेक पोषक तत्वों से भरपूर रहते हैं।
ये प्लग-ट्रे विभिन्न आकार-प्रकार की होती है जो इनमें मौजूद सेल के आकार तथा संख्या पर निर्भर होती है। प्राय: कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिये ऐसे प्लग ट्रे जिनमें 3.75 से.मी (1.5 इंच) गहरे व चौड़े कुल 185 से 190 तक प्लग (सेल) निर्मित हो वह सबसे उपयोगी रहती है।
प्लग-ट्रे में नर्सरी पौध तैयार करने की विधि
सर्व प्रथम प्लास्टिक ट्रे को उपचारित कर लें जिससे रोग व संक्रमण के खतरों से पौधों को पहले ही सुरक्षित कर लिया जा सके। जिसके लिए 0.1 प्रतिशत क्लोरीन ब्लीच अथवा 0.1 प्रतिशत सोडियम हाइपो क्लोराइड के घोल में ट्रे को डुबोया जाता है। इसके पश्चात प्रत्येक प्लग को 3: 1: 1: ( तीन भाग कोकोपिट, एक भाग वर्मीक्यूलाइट, एक भाग परलाइट के मिश्रण से भर देते हैं। इन ट्रे को नेट हाउस अथवा पाली हाउस में रखना सुरक्षित रहता है। फिर प्रत्येक सेल में 1 सेमी की गहराई पर बीज को दबा दें इसके तुरंत बाद हल्की फुहार की सिंचाई दें।
बीज दर एवं बीजों की संख्या प्रति ग्राम :-
फसल | बीज संख्या/प्रति ग्राम | बीज दर/हे. |
तरबूज | 20-22 | 900 – 950 ग्राम |
खरबूज | 30 – 35 | 600 – 700 ग्राम |
खीरा | 30 – 35 | 600 ग्राम |
लोकी | 2 – 3 | 1.5 – 2 किलोग्राम |
इस तरह से एक ट्रेमें 185-190 नर्सरी पौध 30-32 दिन की अवधि में तैयार हो जाते हैं।
तरबूज व खरबूज की एक हेक्टर की फसल के लिए लगभग 100-110 ट्रे प्लास्टिक से नर्सरी पौध तैयार की जा सकती है। जिसका खर्चा 55 पैसे प्रति पौध आता है एवं इसमें पारंपरिक तरीके की तुलना में बीज आधे से कम लगता है।
प्राय: कद्दूवर्गीय सब्जियों जैसे तरबूज, खरबूज, लौकी एवं खीरा आदि की नर्सरी तैयार करने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च का महीना होता है क्योंकि तब तक ठंडे मौसम का प्रभाव लगभग कम हो चुका होता है जो कि कद्दूवर्गीय फसलों के लिए अच्छा माना गया है क्योंकि ये सब्जियां पाले एवं कम तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील होती है। परंतु पारम्परिक तरीके से उगाई जाने वाली फसल की नर्सरी फरवरी के अंत से मार्च मध्य तक लगाई जाती है। जिससे मुख्य फसल के फल मई-जून के महीने तक ही से बाजार में पहुंच पाते है इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए प्लग-ट्रे नर्सरी अथवा प्लास्टिक-प्रो-ट्रे नर्सरी की तकनीकी का उपयोग किया जाने लगा है। जिसके माध्यम से शीत ऋतु यानि दिसम्बर-जनवरी के महीने में कद्दूवर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार कर ली जाती है जिससे मुख्य फसल बाजार में सामान्य फसल की तुलना में 45 से 55 दिन पहले ही पहुंच जाती है। मार्च अंतिम सप्ताह से अप्रैल मध्य तक तैयार सब्जी की आवक बाजार में पहुंचती है जिसे पहली फसल के रूप में ज्यादा दामों पर बेचा जा सकता है।
नर्सरी अवस्था के दौरान पौधों की देखभाल
सिंचाई: प्लग- ट्रे में लगी नर्सरी पौध पर पानी इस तरीके से डालें जिससे प्रत्येक सेल्स (पौधे) में हमेशा पर्याप्त नमी बनी रहे। सिंचाई फुहार के माध्यम से सुबह के समय डालें क्योंकि शाम को सिंचाई करने से पौधों की जड़ों में गलन की समस्या हो सकती है।
उर्वरक एवं खाद: इन्हें सीधे ना देकर पानी में घोल बनाकर डाला जाता है। कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए हफ्ते में एक बार 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस व 50 ग्राम पोटेशियम को 100 लीटर पानी में घोल बनाकर डालते हैं। ऐसा तीन से चार बार दिया जा सकता है।
रोग नियंत्रण: आद्र्-पतननर्सरी पौधे का प्रमुख रोग है अगर ये फैलता दिखे तो पौधों के 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन के घोल से उपचारित करना अथवा 0.1 प्रतिशत फार्मेलिन के घोल का भी छिड़काव किया जा सकता है।
जब नर्सरी पौध में 3-4 पत्तियाँ आ जाएं तथा वे 30-32 दिन के हो जाएं तब ये रोपण के लिए तैयार माने जाते है।
प्लग- ट्रे नर्सरी उत्पाद तकनीकी को क्यों अपनाएं
- प्लग- ट्रे तकनीकी के माध्यम से वर्ष के किसी भी समय बेमौसमी नर्सरी को उगाया जा सकता है।
- मृदा जनित रोग जैसे पौध सडऩ-गलन लगने की संभावना ना के बराबर रहती है।
- स्वस्थ एवं रोग मुक्त पौधे कम समय में तैयार किए जा सकते है।
- पारंपरिक तरीके से नर्सरी उगाने से कई पौधे नष्ट हो जाते हैं परंतु प्लग ट्रे के माध्यम से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।
- प्लग ट्रे नर्सरी से प्राय: 95 से 100 प्रतिशत पौधे जीवित रहते हैं। जिनके पौधारोपण के बाद भी जीवित रहने की काफी संभावना रहती है।
- पारंपरिक तरीके की तुलना में आधी बीज दर लगती है तथा देख रेख में भी कम खर्च आता है।
- नर्सरी उत्पादन एक बेहद सफल व्यवसाय के तौर पर उभर रहा है।
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