पशुओं को निम्नलिखित विधियाँ से दवाएं दी जा सकती है –
I. मुंह के द्वारा दवा पिलाना – अधिकांश औषधियां पानी अथवा तेल में मिलाकर पशु के मुख द्वारा पिलाई जाती है।
II. दवा चटाना (चटनी के रूप में) – कई दवाइयां ऐसी होती है, जिनको कि पशु को पिलाने के बजाए चटाना अधिक आसान होता है।
III. खुराक के साथ दवाई देना – संतुलित पशु आहार अथवा खली – चोकर के साथ मिलाकर भी पशुओं को दवाईयां खिलायी जाती है।
IV. सूई (इंजेक्शन द्वारा) – पशुओं के रोग की गंभीर स्थिति के कारण जब उन्हें एंटीबायोटिक देने होते है तो उन्हें सूई (इंजेक्शन) द्वारा दिए जाते हैं।
V. पैर धोना (फुटबाथ) – सामान्यता जब पशु में खुर संबंधी बीमारियाँ होती है तो उन्हें दवाईयों के घोल में खड़ा किया जाता है।
VI. मालिश द्वारा – पशुओं के मोच आने की स्थिति में काले मलहम या बेलाडोना लिनिमेंट या तारपीन लिनिमेंट की मालिश करने से पशु को लाभ होता है।
VII. सिंकाई करना – पशुओं को चोट लगने से जब उनके मुख में सूजन आ जाती है उस पर सेंक करना उपयोगी होता है।
VIII. पुल्टिस बांधना – पशुओं को फोड़ा होने पर स्थिथि में इसको पकाने के लिए प्राय: अलसी के दानों को बारीक़ पीसकर उसमें पानी मिलाकर तथा आग पर थोडा गर्म करके उसकी पुल्टिस को एक कपड़े की तह में रखकर प्रभावित अंग में बांध दिया जाता है। जिससे घाव शीघ्र पक जाता है।
IX. एनिमा लगाना – पशु द्वारा गोबर न करने अथवा कब्ज होने की स्थिति में उसे एनिमा दिया जाता है जिससे उसके मल बाहर आ जाता है।
X. आँख – कान में दवा डालना – पशुओं के आँख तथा कान के रोगों में द्रव अथवा मलहम लगाया जाता है। दवा लगाने अथवा डालने से पहले आँख तथा कान को अच्छा तरह से रूई के फाहे अथवा डालने से पहले आँख तथा कान को अच्छी तरह से रूई के फाहे से साफ कर लेना चाहिए।
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