बाँधकर बकरियों का पालन करते वक्त घास का पूरे साल का नियोजन करने की जरूत है। घास पूरे साल मिलनी चाहिए, इसकी आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने से समस्या हो सकती है। आम तौर पर गर्मी में घास की कमी होने से समस्या ज्यादा गंभीर जाती है। इसपर ‘ मूरघास ‘ यह एक अच्छा पर्याय माना जाता है।
मूरघास का मतलब क्या है ?
अलग अलग ऋतुओं में आनेवाली चारा फसल को काटकर उसे हवाबंद स्थिती में रखा जाता है, उसे मूरघास कहते है। वैसे ही घरों में अलग अलग तरह के आंचार बनाकर रख देते है और पूरे साल में आंचार इस्तेमाल खाने में किया जाता है। घास के फसलों से मूरघास बनाकर वही पूरे सालभर जानवरों को दी जाती है। मूरघास पौष्टिक होती है, और बकरियों को यह स्वादिष्ट लगता है। मूरघास से उन्हें हरे अनद्रव्य मिल जाते हैं। यह खाद्यान्न बनाने के लिए ज्यादा खर्चा भी नहीं आता।
मूरघास के लिए चारा फँसल
एकदल फँसल :- मक्का, जवार, बाजरा, ओटस् आदि
दोदल फँसल :- चना, सोयाबीन, लहसून, बरसीम
मूरघास किस में बनानी चाहिए ?
बकरियों की संख्या और उपलब्ध घास फँसल इन्हें देखकर मूरघास की कितनी आवश्यकता है, इसका अनुमान लगाना पड़ता है। आवश्यक नियोजन कर के बड़ी टंकी में अथवा गड्डे में अथवा प्लॅस्टिक के मोटे थैले में मूरघास बनाई जाती है।
मूरघास बनाने की विधी :
घास फँसल फूलने में होती है तबही उसका कटाई कर उसे सुखने से बाद कटाई मशीन से घास काटने की जरूरत होती है। मूरघास बनानेके लिए जो जगह तयार की है, उस गल्ले में अथवा टंकी में प्लास्टिक की मोटी पन्नी डालकर उसपर कटी घास बिखरनी चाहिए। उसे पैर से अच्छेसे दबाना चाहिए, दबानेसे उस निज मिश्रण का पानी, नमक का पानी, गुड का पानी उसके उपर सिंचना चाहिए| इस तरिके से गड्डा या टंकी पुरी भरनी चाहिए। प्लास्टिक की चारों तरफसे – गड्डा टंकी बंद कर रखना चाहिए। इसके उपर गिली मिट्टी और गोबर लगानेसे बाहर से पानी अथवा हवा अदर नहीं जाती| यह मुरघास ऐसीही ४५ दिन रखनी चाहिए। इसके बाद खाद्यान्न रूपमे बकरियों को दे सकते है |
मूरघास बनाते समय सावधानी बरतनी चाहिए
१) मूरघास बनानेवाली टंकी या गड्डा घास डालकर बंद करने से पहले वह हवाबंद है या नहीं, यह ध्यानसे देखना चाहिए।
२)टंकी या गड्डे में जो प्लास्टिक की पत्नी उपयोगमे लायी है, वह ना फटे इसका रखना। अच्छी कंपनीकी मोटी पन्नी उपयोग में लानी चाहिए।
३) मूरघास कब तैयार की है इसकी तारीख, ध्यान से लिखकर रखनी चाहिए| इससे मूरघास कब से इस्तेमाल कर सकते हैं, यह समझ में आ जाता है।
४) मुरघास बनाते समय और इसका प्रयोग करने से पहले पशुचिकित्सक से परामर्श लेना जरुरी है।
५) मूरघास उपयोग में लाना शुरू करने के बाद, बची हुई घास अच्छे से ढककर रखनी चाहिए। उस में हवा अंदर नहीं जानी चाहिए।
मूरघास के लाभ
मूरघास तैयार करने के लिए घास फँसल की कटाई करने के बाद, भूमी दुसरी फैसल लेने के लिए मिल जाती है।
२)गर्मी के दिन में और घास का अभाव होने से मुरघास के मदद से बकरियों को हरी घास, पौष्टिक घास देनी आसान हो जाता है।
३)जानवरों को मूरघास स्वादिष्ट लगती है। और पौष्टिक होने के कारण उनके लिए अच्छा होती है|
४) मूरघास में पानी ७० प्रतिशत, प्रोटिन्स, १६.८७ प्रतिशत चरबी ६.९५ प्रतिशत होती है| मुरघास एक बार एक बड़े जानवर को ज्यादा से ज्यादा १० किलो दे सकते है| मुरघास प्रकल्प के लिए १०*८*८ इस आकार में टंकी निर्माण के साठ हजार रुपिये खर्चा अनुमानित है। इस में १६ टन घास आराम से आती है। एकबार मूरघास बना दी तो, पुरे सालभर उपयोग में आती है।
सुचना – मूरघास प्रक्रिया की अधिक जानकारी लेने के लिए नजदीक के पशुवैद्यक से संपर्क करें।
गड्डा खोलते समय बरतने योग्य सावधानी
१)मरघास तैयार होने के बाद गल्ला खोलकर उस पर लगाया गया आच्छादन निकाल देना चाहिए। थोड़ी देर रुकना चाहिए, इस से हवाबंद गल्ले में होनेवाले अपायकारक वायू बाहर निकलते है।
२)गड्डे में धीरे से उतरना चाहिए और दाँतवाले औजार की सहायता से मूरघास निकालनी चाहिए। मूरघास आजूबाजू में उपर और नीचे थोड़ी खराब हो जाती है। यह सड़ा हुआ हिस्सा निकालकर फेंकना चाहिए। और उसके बाद मूरघास उपयोग के लिए निकालनी चाहिए। हवा अदर ना जाए, इस तरह गड्डा फिर से अच्छी तरह बंद कर रखना चाहिए।
४) मूरघास में फफूद लगनी नहीं चाहिए।
५) हवाबंद स्थिती में मुरघास गर्म हो सकती है। इसलिए मूरघास निकालते समय पैरों में चप्पल पहनना जरूरी है। मूरघास तैयार करनेसे पहले और गड्डा खोलते वक्त अनुभवी कुशल व्यक्तीओं का अथवा तज्ज्ञ व्यक्ती से मार्गदर्शन जरूर लेना।
मुरघास का प्रयोग करते वक्त बरतने की सावधानी
- मूरघास दिन में दो – तीन बार सम प्रमाण में बाँटकर देनी चाहिए।
- मूरघास देनेसे पहले ही बकरियों को सुखा चारा खाने देना है।
- मूरघास आम्लयुक है, अथवा खट्टी है, तो थोड़ी देर सुखानेके लिए रखनी चाहिए।
- मूरघास की आदत बकरियों को लगनी चाहिए, इसलिए पहले पहले सुखे घास में, चारे में घुलाकर देनी चाहिए।
- बकरी दूध देनेवाली हो, तो उसका दूध निकालने के बाद, उसे मूरघास देनी चाहिए। इस से दूध को मूरघास की गंध नहीं आती।
- मूरघास फूँद लगी हुई बकरियोंने खा ली, तो उनकी पचनक्रिया बिगड जाती है। उन्हें जुलाब होते है। मूरघास को रखने के लिए बड़ी पूँजी लगानी पड़ती है। गलत तरीके से बनाई मूरघास जानवर नहीं खाते। इसलिए चारे के साथ साथ लगाई गई पूँजी भी बेकार में जाने की आशंका होती है। मूरघास के लिए जो भी चारा लेते है, उस में प्रोटिन्स, कर्ब, और शर्करा इनका प्रतिशत अच्छा होना चाहिए। पौष्टिक मूरघास बनाते समय मक्के को प्राधान्य देना चाहिए। बकरियों को मूरघास देते समय , सौ ग्रॅमसे शुरुवात करना चाहिए। दो किलो तक मूरघास दे सकते हैं। मूरघास खाने की और उसे पचाने की आदत बकरियों को लगनी चाहिए, इसलिए इसका अनुपात धीरे धीरे बढ़ाना चाहिए।
- जंगल में आनेवाली घास, तने, घास फैसल, ताग, मटर, इनका उपयोग मूरघास के लिए कर सकते है।
- गन्ने की तने से भी पौष्टिक और पाचक मूरघास बना सकते है।
- गन्ने के हरे तने, युरिया, गुड, नमक, खनिज मिश्रण डालकर अच्छी मूरघास बना सकते है।
निकृष्ट घास / चारा सकस बनाना ( युरिया प्रक्रिया )
घास फँसल की कटाई नियोजित समयपर नहीं की गई, तो यह फँसल बेकार हो जाती है। बाजरे के तने, चावल का भूसा, गन्ने के तने, सूखने के बाद चारे के तौर पर उनका स्तर कम हो जाता है| ऐसी निष्ट घास, चारा आधुनिक प्रक्रिया से सकस, पौष्टिक बना सकते है।
युरिया प्रक्रिया पद्धति
इस प्रक्रिया के लिए बाजरा, गन्ना, चावल इनका अथवा बाकी कौन सा भी निकृष्ट चारा लेना है। सौ किलो की मशीन से कटई करानी है। उस में एक किलो नमक, तीन किलो गुड, और २५० ग्रॅम युरिया के अलग अलग पानी कटे हुये घासपर सींचना है| यह सकस घास चोबीस घंटे ढगकर, दबाकर रखनी है। इसके बाद इसका प्रयोग बकरियों और बाकी जानवरों के खाद के तौर पर कर सकते है। यह सकस घास जानवर बड़े चाव से खाते है।
जानवरों के लिए उत्तम खाद
प्रक्रिया युक्त गेहूँ के तने : रंब्बी हंगाम में किसान गेहूं की फैसल बड़े पैमाने पर करते है। गेहूँ की कटाई के बाद तने जलाते है अथवा निकालकर फेंक देते है। ऐसे तने, चावल का भुसा प्रक्रिया करके चारे के तौर पर उपयोग में लाया जा सकते हैं।
प्रक्रिया की पद्धति
- युरिया ठीक अनुपात से लेकर गलाना चाहिए। उसके बाद उस में क्षार मिश्रण, खड़ा नमक, गुड़ डालकर अच्छी तरह घोलकर मिलाना चाहिए।
- यह घोल छह इंच के भुसे का स्तर लगाकर उपर सिंचना है। भूसा उपर – नीचे कर के अच्छी तरह मिलाना है। इसी तरह छह – छह इंच के स्तर पर स्तर रचना कर के पूरा घोल का छिड़काव हर स्तर पर करना चाएय|
- हर बार ‘ मुसा जोर से दबाकर उससे हवा निकालनी है। यह मुसा दबाकर प्लास्टिक के मोटे पत्नी से हवाबंद करके ढंकना चाहिए। दो घंटों के बाद जानवरोंको खानेके लिए दे सकते है। बकरियाँ बड़े चावसे यह खाती है।
सावधानी बरतना
- प्रक्रिया में युरिया का अनुपात एकदम सही होना चाहिए। युरिया का अनुपात डेट टके से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- युरिया अच्छी तरह धूल जाए, यह देखना चाहिए।
- प्रक्रिया के बाद तयार होनेवाला चारा दो घंटों के बाद तुरंत जानवरों को देना चाहिए। इसे ज्यादा देर तक जमा कर बिल्कुल नहीं रखना चाहिए।
बारामती कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा सौ किलो गेहूं के तनेपर की जानेवाली प्रक्रिया और जवार के तने इनका तुलनात्मक अभ्यास किया है। किसान गेहूं के तने अथवा चावल का भुसा निकृष्ट है, ऐसे समझकर फेंक देते है। लेकिन अब इस तने और ‘भूसे पर अच्छी प्रक्रिया कर के उसका रुपांतर सकस चारे में हो सकता है। जिस प्रदेश, प्रभाग में चारा टंचाई की समस्या है, वहाँ यह सकस खाद उपयोग में लाया जा सकता है। इससे जानवरों के खादपर होने वाला खर्चा कम हो सकता है।