कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं स्वभाव से तात्पर्य यह है कि – कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला या दोनों है और यह यदि विज्ञान है तो कैसा – आदर्शात्मक या वास्तविक?
कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान के रूप में —
कृषि विज्ञान वास्तविक विज्ञान है या इसका कोई आदर्शात्मक पहलु भी है l इसे जानने से पूर्व वास्तविक तथा आदर्श विज्ञान दोनों का अर्थ जानना उचित होगा l
वास्तविक विज्ञान किसी भी विषय का अध्ययन उसके वास्तविक रूप में करता है । जैसा कि बक्ल एवं काम्ट महोदय ने लिखा है ।
“विज्ञान ज्ञान का वह क्षेत्र है जिसकि घटनाओ में परस्पर कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता हो और जिसके स्थापित निष्कर्षो के आधार पर भविष्यवाणी की जा सकती है।“
शब्दकोष के अनुसार, “ A knowledge ascertained by observation and experiment, critically lasted systematized and brought under general principles. “इस प्रकार स्पष्ट है कि :
- विज्ञान के तथ्य निश्चित होते हैं ।
- विज्ञान में प्रयोग और परीक्षण किया जाता है ।
- विज्ञान में कार्य और कारण में अनन्य सम्बन्ध होता है ।
- विज्ञान के निष्कर्ष निश्चित होते है ।
- विज्ञान में भविष्यवाणी की जा सकती है ।
वास्तविक विज्ञान ‘क्या है ?’ की विवेचना तो करता है लेकिन ‘क्या होना चाहिए?’ से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। वास्तविक विज्ञान घटनाओं का तटस्थ रहकर अध्ययन एवं विश्लेषण करता है लेकिन नीती – विषयक कोई निर्देश नहीं देता ।
इसके विपरीत आदर्श विज्ञान ‘क्या होना चाहिए ?’ का उत्तर देता है । यह केवल तथ्यों का यथावत वर्णन ही नहीं करता, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि क्या किया जाना चाहिए? अन्य शब्दों में आदर्श केवल विषय की व्याख्या करता है, बल्कि आदेश भी देता है । इस प्रकार आदर्श विज्ञान प्रत्येक विषय पर नीतिशास्त्र के दृष्टिकोण से विचार करता है ।
उपर्युक्त तथ्यों के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि कृषि विज्ञान एक विज्ञान है क्योंकि यह वास्तविक विज्ञान की भाँति कार्य और कारण सम्बन्ध का अध्ययन करता है । उदाहरणार्थ , एक दी हुई भूमि पर पुंजी और श्रम की अधिक मात्राओं का प्रयोग किया जाता है तो प्रत्येक अगली मात्रा की उत्पत्ति घटती जाती है । अन्य शब्दों में, कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होता है । इसके अतिरिक्त कृषि अर्थशास्त्र के भी कई नियम है जो कारण व परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करते हैं । यह भी विज्ञान की भाँति निरीक्षण तथा वर्णन करता है । कृषि अर्थशास्त्र अपने नियमों को स्थापित करने के लिए विज्ञान की दो रीतियों को अपनाता है ।
- निगमन रीति ( Deductive Method ) ,
- आगमन रीति ( Inductive Method ) ।
कृषि अर्थशास्त्र के उत्पत्ति के अध्ययन में प्राय: निगमन रीति और विनिमय, वितरण व उपभोग के अध्ययन में प्रायः आगमन रीति का प्रयोग किया जाता है ।
कृषि अर्थशास्त्र का आदर्शवादी पहलू भी हैं । दूसरे शब्दों में, जहाँ कृषि अर्थशास्त्र का एक अंश वास्तविक विज्ञान है तो उसका दूसरा अंश आदर्शवादी भी है । यह उचित और अनुचित तथा अच्छे और बुरे का भी विचार करता है तथा कुछ आदर्श भी प्रस्तुत करता है । उदाहरण के लिए, यह बताता है कि भारत में अन्य देशों की तुलना में प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन विकसित देशों की तुलना में कम है । अतः इसे बढ़ाया जाना चाहिए । इस तरह यह कह सकते हैं कि कृषि अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान भी है । कृषि अर्थशास्त्र एक व्यावहारिक विज्ञान है क्योकि यह अर्थशास्त्र के सिद्धान्तो एवं नियमों को वैज्ञानिक ढंग से अपनाकर कृषकों की विभिन्न समस्याओं को हल करने की विधि की विवेचना करता है ।
कृषि अर्थशास्त्र कला के रूप में
कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान होने के साथ – साथ कला भी है । कोई कार्य किस प्रकार किया जाये कि निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हो सके उसे कला कहते हैं । अर्थात् कला से अभिप्राय किसी कार्य को सर्वोत्तम ढंग से करने से है । ज्ञान का व्यवहारिक प्रयोग ही कला है । इस आधार पर यदि देखा जाये तो कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान के साथ – साथ कला भी है क्योकि इसमें ज्ञान का प्रयोग व्यवहारिक जीवन में किया जाता है । कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत प्राकृतिक सम्पदा , कृषि तथा कृषि आधारित उद्योग, पशुपालन, कृषि विपणन आदि की नीति का मूल्यांकन किया जाता है तथा भावी विकास के लिए सुझाव प्रस्तुत किया जाता है । इस प्रकार कला के रूप में कृषि अर्थशास्त्र खेती और पशुपालन से अधिकतम उत्पत्ति व खर्च करने के ऐसे उपाय बताता है जिससे किसान व समाज को आर्थिक लाभ होता है l
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