पुदीने की खेती भाग – १
पुदीना मैंथा के नाम से जानी जाने वाली एक क्रियाशील जड़ी बूटी है। पुदीना को तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश और कई व्यंजनों में स्वाद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके पत्ते कई तरह की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। पुदीने से तैयार दवाइयों को नाक, गठिया, नाड़ियां, पेट में गैस और सोजिश आदि के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसे व्यापक श्रेणी की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक छोटी जड़ी-बूटी होती है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-2 फीट के साथ फैलने वाली जड़ें होती हैं। इसके पत्ते 3.7-10 सैं.मी. लंबे और जामुनी रंग के छोटे फूल होते हैं। इसका मूल मैडिटेरेनियन बेसिन है। यह ज्यादा अंगोला, थाइलैंड, चीन, अर्जेंनटीना, ब्राज़ील, जापान, भारत और पारागुए में पाया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश और पंजाब भारत के पुदीना उत्पादक राज्य हैं |
मिट्टी –
पुदीने को मिट्टी की कई किस्मों जैसे दरमियाने से गहरी उपजाऊ मिट्टी, जिसमें पानी को सोखने की क्षमता ज्यादा हो, में उगाया जाता है। इसको जल-जमाव वाली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। उच्च नमी वाली मिट्टी में यह अच्छे परिणाम देती है। इस फसल के लिए मिट्टी का pH 6-7.5 होना चाहिए|
जमीन कि तैयारी –
पुदीने की बिजाई के लिए सुविधाजनक आकार के बैड तैयार करें। खेत की तैयारी के समय खेत की अच्छी तरह जोताई करें। जैविक खाद जैसे रूड़ी की खाद 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें| रूड़ी की खाद के बाद हरी खाद डालें|
बिजाई–
बिजाई का समय – इसकी बिजाई के लिए दिसंबर-जनवरी का समय अनुकूल होता है।
फासला– पौधे के भागों की बिजाई 40 सैं.मी. के फासले पर और पंक्तियों के बीच का फासला 60 सैं.मी होना चाहिए।
बीज कि गहराई– बीज को 2-3 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
बिजाई का ढंग– पौधे के जड़ वाले भाग को मुख्य खेत में बोया जाता है|
बीज कि मात्रा – प्रजनन क्रिया जड़ के भाग या टहनियों द्वारा की जाती है| अच्छी पैदावार के लिए 160 किलो भागों को प्रति एकड़ में प्रयोग करें। जड़ें पिछले पौधों से दिसंबर और जनवरी के महीने में प्राप्त की जाती है|
बीज का उपचार– फसल को जड़ गलने से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीजे जाने वाले उपचार कप्तान 0.25 प्रतिशत या आगालोल 0.3% या बैनलेट 0.1% से 2-3 मिनट के लिए किया जाना चाहिए।
पनीरी की देखरेख और रोपण– बिजाई से पहले पौधे की बारीक जड़ 10-14 सैं.मी. काटें। पुदीने की जड़ को आकार और जड़ के हिसाब से बोयें। पौधे की बारीक जड़ की रोपाई 40 सैं.मी. के फासले पर और कतार से कतार का फासला 60 सैं.मी होना चाहिए। बिजाई के बाद मिट्टी को नमी देने के लिए सिंचाई करें।
रोपाई के बाद नदीनों की रोकथाम के लिए सिनबार 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
नदीनों से बचाव के लिए एट्राज़ीन और सिमाज़ीन 400 ग्राम, पैंडीमैथालीन 800 मि.ली. और ऑक्सीफ्लूरोफेन 200 ग्राम की बूटीनाशक स्प्रे प्रति एकड़ में करें।
खाद– ( किलोग्राम प्रती एकड )
युरिया- १३०
SSP- ८०-१००
MOP- ३३
तत्व किलोग्राम प्रती एकड
नायट्रोजन- ५८
फॅास्फोरस – ३२-४०
पोटॅश – २०
खेत की तैयारी के समय रूड़ी की खाद 80-120 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 58 किलो (यूरिया 130 किलो), फासफोरस 32-40 किलो (सिंगल सुपर 80-100 किलो), पोटाशियम 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 33 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
खतपतवार नियंत्रण
हाथों से लगातार गोडाई करें और पहली कटाई के बाद खेत को नदीन मुक्त करें। नदीनों की रोकथाम के लिए सिनबार 400 ग्राम प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नदीनों को नियंत्रित करने के लिए जैविक मल्च के साथ ऑक्सीफलोरफिन 200 ग्राम या पैंडीमैथालीन बूटीनाशक 800 मि.ली को प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यदि नदीन ज्यादा हो तो डालापोन 1.6 किलोग्राम प्रति एकड़ या ग्रामाक्ज़ोन 1 लीटर और डयूरॉन 800 ग्राम या टेरबेसिल 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
सिंचाई–
गर्मियों में मॉनसून से पहले जलवायु और मिट्टी के आधार पर 6-9 सिंचाइयां जरूर की जानी चाहिए। मॉनसून के बाद 3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई सितंबर महीने में, दूसरी अक्तूबर में और तीसरी नवंबर महीने में की जानी चाहिए। सर्दियों में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यदि सर्दियों में बारिश ना पड़े तो एक सिंचाई जरूर देनी चाहिए।
पौधे की देखभाल–
हानिकारक किट और नियंत्रण–
बालों वाली सुंडी :
यह डिकारसिया ओबलीकुआ के कारण होती है। यह हरे पत्तों को खाती है और पूरे पौधे को नष्ट कर देती है।
इस कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियॉन या थायोडन 1.7 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कुतरा सुंडी :
यह एगरोटिस फलेमैटरा के कारण होती है। यह बसंत ऋतु के दौरान पौधे की गर्दन को नुकसान पहुंचाती है।
इस कीट की रोकथाम के लिए रोपाई से पहले फॉरेट 10 ग्राम से मिट्टी का उपचार करें।
लाल भुंडी:
यह आउलोकोफोरा फोइवीकॉलिस के कारण होती है। यह ताजे हरे पत्तों और कलियों को खाती है।
इस कीट की रोकथाम के लिए थायोडैन 1 मि.ली को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पुदीने की पत्ता लपेट सुंडी : यह सिंगमिया अबरूपतालिस के कारण होती है। यह कीट पत्तों को लपेट देती है और अगस्त सितंबर के महीने में अंदर से पत्तों को खाती है।
इस कीट से बचाव के लिए थायोडन 1.5 मि.ली. को 1 लीटर पानी में मिलाकर सप्ताह के अंतराल में 2-3 बार छिड़काव करें।
बीमारियां और रोकथाम
तना गलन : यह मैकरोफोमिना फेज़िओली के कारण होती है। यह पौधे के निचले भागों में हमला करती है जिससे पौधे पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में पौधे को खोखला कर देता है।
इस कीट की रोकथाम के लिए कप्तान 0.25% या आगालोल घोल 0.3 % या बैनलेट 0.1 प्रतिशत में 2-3 मिनट के लिए तने को रखें।
फुज़ारियम सूखा : यह फुज़ारियम ऑग्ज़ीस्पोरियम के कारण होती है। इससे पत्ते पीले, मुड़े हुए और सूख जाते हैं।
इस कीट की रोकथाम के लिए बवास्टिन, बैनलेट और टॉपसिन दें।
पत्ते का झुलस रोग : यह ऑल्टरनेरिया के कारण होती है। यह गर्मियों के मौसम में पत्तों को नुकसान पहुंचाती है।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए कॉपर फंगसनाशी का प्रयोग करें।
फसल की कटाई–
पौधे 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब निचले पत्ते पीले रंग के होने शुरू हो जायें, तब कटाई करें। कटाई दराती से और बूटियों को मिट्टी की सतह के 2-3 सैं.मी. ऊपर से निकालें। अगली कटाई पहली कटाई के बाद 80 दिनों के अंतराल पर करें। ताजी पत्तियों को उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
कटाई के बाद–
कटाई करने के बाद तेल निकालने के लिए उसके नर्म तनों का प्रयोग किया जाता है। फिर पुदीने के तेल को पैक करके बड़े स्टील के या एल्यूमीनियम के बक्सों में रखा जाता है। फसल को नुकसान होने से बचाने के लिए जल्दी मंडी में भेजा जाता है। पुदीने की पत्तियों से काफी तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं जैसे प्रक्रिया के बाद पुदीने का तेल और चटनी आदि।
उत्पत्ति–
गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में- पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। भारतवर्ष में मुख्यतया तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है। पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।
रासायनिक संघटन –
जापानी मिन्ट, मैन्थोल का प्राथमिक स्रोत है। ताजी पत्ती में ०.४-०.६% तेल होता है। तेल का मुख्य घटक मेन्थोल (६५-७५%), मेन्थोन (७-१०%) तथा मेन्थाइल एसीटेट (१२-१५%) तथा टरपीन (पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन) है। तेल का मेन्थोल प्रतिशत, वातावरण के प्रकार पर भी निर्भर करता है। पुदीने में विटामिन एबीसीडी और ई के अतिरिक्त लोहा, फास्फोरस और कैल्शियम भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
उपयोग –
मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौदर्य प्रसाधनों, कालफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में सुगंध के लिये किया जाता है। इसके अलावा इसका उड़नशील तेल पेट की शिकायतों में प्रयोग की जाने वाली दवाइयों, सिरदर्द, गठिया इत्यादि के मल्हमों तथा खाँसी की गोलियों, इनहेलरों, तथा मुखशोधकों में काम आता है। यूकेलिप्टस के तेल के साथ मिलाकर भी यह कई रोगों में काम आता है। अमृतधारा नामक बहुउपयोगी आयुर्वेदिक औषधि में भी सतपुदीने का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से गर्मियों में फैलने वाली पुदीने की पत्तियाँ औषधीय और सौंदर्योपयोगी गुणों से भरपूर है। इसे भोजन में रायता, चटनी तथा अन्य विविध रूपों में उपयोग में लाया जाता है। संस्कृत में पुदीने को पूतिहा कहा गया है, अर्थात् दुर्गंध का नाश करनेवाला। इस गुण के कारण पुदीना चूइंगम, टूथपेस्ट आदि वस्तुओं में तो प्रयोग किया ही जाता है, चाट के जलजीरे का प्रमुख तत्त्व भी वही होता है। गन्ने के रस के साथ पुदीने का रस मिलाकर पीने को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सलाद में इसकी पत्तियाँ डालकर खाने में भी यह स्वादिष्ट और पाचक होता है। कुछ नहाने के साबुनों, शरीर पर लगाने वाली सुगंधों और हवाशोधकों (एअर फ्रेशनर) में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
औषधीय गुण –
स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पुदीने के ढेरों गुणों का बखान किया गया है। यूनानी चिकित्सा पद्धति हिकमत में पुदीने का विशिष्ट प्रयोग अर्क पुदीना काफ़ी लोकप्रिय है। हकीमों का मानना है कि पुदीना सूचन को नष्ट करता है तथा आमाशय को शक्ति देता है। यह पसीना लाता है तथा हिचकी को बंद करता है। जलोदर व पीलिया में भी इसका प्रयोग लाभदायक होता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीने की पत्तियाँ कच्ची खाने से शरीर की सफाई होती है व ठंडक मिलती है। यह पाचन में सहायता करता है। अनियमित मासिकघर्म की शिकार महिला के शारीरिक चक्र में प्रभावकारी ढंग से संतुलन कायम करता है। यह भूख खोलने का काम करता है। पुदीने की चाय या पुदीने का अर्क यकृत के लिए अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में बहुत ही उपयोगी है। मेंथॉल ऑइल पुदीने का ही अर्क है और दांतो से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। जहरीले जंतुओं के काटने पर देश के स्थान पर पुदीने का रस लगा देने से विष का शमन होता है तथा पुदीने की सुगंध से बेहोशी दूर हो जाती है। अंजीर के साथ पुदीना खाने से फेफड़ों में जमा बलगम निकल जाता है।
पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।
इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं।
भारत, इंडोनेशिया और पश्चिमी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर पुदीने का उत्पादन किया जाता है।
पिपरमिंट और पुदीना एक ही जाति के होने पर भी अलग अलग प्रजातियों के पौधे हैं। पुदीने को स्पियर मिंट के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है।
पुदीने को गर्मी और बरसात की संजीवनी बूटी कहा गया है, स्वाद, सौन्दर्य और सुगंध का ऐसा संगम बहुत कम पौधों में दखने को मिलता है। पुदीना मेंथा वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है। इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं, साथ ही इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं।
कुछ घरेलू नुस्खे–
पुदीने की पत्तियों का ताजा रस नीबू और शहद के साथ समान मात्रा में लेने से पेट की हर बीमारियों में आराम दिलाता है।
पुदीने का रस कालीमिर्च और काले नमक के साथ चाय की तरह उबालकर पीने से जुकाम, खाँसी और बुखार में राहत मिलती है।
इसकी पत्तियाँ चबाने या उनका रस निचोड़कर पीने से हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।
सिरदर्द में ताजी पत्तियों का लेप माथे पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
मासिक धर्म समय पर न आने पर पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण को शहद के साथ समान मात्रा में मिलाकर दिन में दो-तीन बार नियमित रूप से सेवन करने पर लाभ मिलता है।
पेट संबंधी किसी भी प्रकार का विकार होने पर एकचम्मच पुदीने के रस को एक प्याला पानी में मिलाकर पिएँ।
अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।
पुदीने की पत्तियों को सुखाकर बनाए गए चूर्ण को मंजन की तरह प्रयोग करने से मुख की दुर्गंध दूर होती है और मसूड़े मजबूत होते हैं।
एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं।
पुदीने के रस को नमक के पानी के साथ मिलाकर कुल्ला करने से गले का भारीपन दूर होता है और आवाज साफ होती है।
पुदीने का रस रोज रात को सोते हुए चेहरे पर लगाने से कील, मुहाँसे और त्वचा का रूखापन दूर होता है।
पुदीने मे पाये जाने वाले पोषकतत्व :
कैलोरी – ६
फाईबर- १ ग्राम
विटामिन ए – आरडीआई का १२ %
आयरन – आरडीआई का ९ %
मैगनीज – आरडीआई का ८ %
फोलेट – आरडीआई का ४ %
पुदीना को अक्सर भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए हल्की मात्रा में उपयोग में लाया जाता है. इसके अलावा पुदीना को एंटीऑक्सिडेंट व विटामिन A का एक उचित स्रोत के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके इस्तेमाल से आंखों की रौशनी को बरकरार व नाइट विजन जैसी समस्याओ से छुटकारा दिलाता है. पुदीना में पाया जाने वाला एंटीऑक्सिडेंट, ऑक्सीडेटिव तनाव से हमारे शरीर की सुरक्षा में सहायता करते हैं
यद्यपि इसकी बड़ी मात्रा में आम तौर पर खपत नहीं होती है, पुदीना में कई पोषक तत्वों की उचित मात्रा होती है और विटामिन ए और एंटीऑक्सीडेंट्स का अच्छा स्रोत होता है।
पुदीना के औषधीय गुण
आयुर्वेदिक मतानुसार पुदीना स्वाद में कटु, रुचिकर, स्वादकारक सुगंधित में लघु रुक्ष, तीक्ष्ण, विपाक में कटु प्रकृति में गर्म, वात, कफ नाशक पितकारक होता है । यह अजीर्ण, अरुचि, मुंह की बदबू, गैस की तकलीफ, हिचकी, बुखार, पेट दर्द, उलटी, दस्त, जुकाम, खांसी में लाभप्रद होता है।
इसके अलावा चेहरे का सौदयॅ बढ़ाने, त्वचा की गर्मी दूर करने, बीमारियो के किटाणुओ को नष्ट करने, दिल को ठंडक पहुंचाने, जहरीले कीड़ों के काटने पर, प्रसूति ज्वर में भी पोदीना गुणकारी होता है।
पुदीना के विभिन्न रोगों में प्रयोग और घरेलु उपचार
१. मुख की दुर्गन्ध के लिए पुदीना –
पुदीने की पत्तियों को थोड़े-थोड़े समय बाद चबाते रहने से मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। 15-20 हरी पत्तियों को एक गिलास पानी में अच्छी तरह उबालकर उस पानी से गरारे करने से भी यही लाभ मिलेगा।
- जहरीले कीड़ों के काटने पर पुदीना के पत्तो से उपाय
पत्तों को पीसकर दंश पर लगाएं और पत्तों का रस 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पिलाएं। 2-3 दिनों ठीक होगा |
- वमन होने पर पुदीना का सेवन
पुदीने का रस और नीबू का रस, दोनों समभाग मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में 3-4 बार पिलाने से लाभ मिलेगा।
- पेट दर्द होने पर पुदीना का सेवन
पोदीने के पत्तों का सूखा चूर्ण 2 चम्मच और एक चम्मच मिस्री या चीनी मिलाकर सेवन करने से पेट दर्द में आराम होगा।
- चेहरे का सौंदर्य बढाने के लिए पुदीना से उपाय
पोदीने की पत्तियों को पीसकर गाढ़ा लेप तैयार करें और सोने से पूर्व चेहरे पर मलें। सुबह चेहरा गर्म पानी से धो लें। कुछ हफ्ते नियमित रूप से किए गए सेवन से चेहरे के दाग-धब्बे, झांइयां, मुंहासे, फुसियां दूर होकर चेहरे पर निखार आ जाएगा।
- हिचकी आने पर पुदीना
हिचकी के रोग में पुदीना का प्रयोग किया जा सकता है | पुदीने के पत्तो को चूसने और पत्तों को नारियल के साथ चबाकर खाने से हिचकी दूर होगी।
- गैस की तकलीफ में पुदीना का प्रयोग
4 चम्मच पोदीने के रस में एक नीबू का रस और 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से गैस की तकलीफ में तुरंत आराम मिलता है।
- त्वचा रोग के लिए पुदीना उपयोगी
स्किन के रोगों में पुदीने का प्रयोग किया जाता है | खाज, खुजली जैसे त्वचा रोगों में हल्दी और पुदीने की मात्रा में मिलाकर लगाएं। इससे कुछ दिनों में फायदा होगा |
- सर्दी, खांसी, जुकाम, दमा, ज्वर में पुदीना से लाभ
कफ जनित रोगों में भी पुदीने को इस्तेमाल किया जाता है | इसके लिए पुदीने की पत्तियों तथा काली मिर्च मिलाकर चाय बनाएं और गर्म-गर्म पिएं। सभी तकलीफों में आराम मिलेगा।
- पेट के कृमि में पुदीना
पेट कीड़ों को मारने पुदीने का रस उपयोगी होता है | इसके लिए आधा कप पोदीने का रस दिन में 2 बार नियमित रूप से कुछ दिन तक पिलाते रहने से पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
- मूर्च्छा आने पर पुदीना से उपाय
पुदीने का प्रयोग मूर्च्छा को दूर करने में भी किया जाता है पुदीने के पत्तों को मसलकर सुंघाने से मूच्छ दूर होगी।
- बदहज़मी, भूख की कमी में पुदीना का सेवन
4-6 मुनक्के के साथ 8-10 पोदीने की पत्तियां सुबह-शाम खाने के बाद नियमित रूप से चबाते रहने से कष्ट में आराम मिलेगा।