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Home शेती

लेट्युस (Lettuce) – सलाद / काहु की खेती

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
November 10, 2019
in शेती, हिन्दी
0
लेट्युस (Lettuce) – सलाद काहु की खेती
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‘सलाद’ एक मुख्य सलाद की फसल है । अन्य सब्जियों की तरह यह भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में पैदा की जाती है । इसकी कच्ची पत्तियों को गाजर, मूली, चुकन्दर तथा प्याज की तरह सलाद तथा सब्जी के प्रयोग में लाया जाता है । ये फसल मुख्य रूप से जाड़ों में उगायी जाती है । अधिक ठण्ड में बहुत अच्छी वृद्धि होती है तथा तेजी से बढ़ती है । इस फसल को अधिकतर व्यवसायिक रूप से पैदा करते हैं और फसल की कच्ची व बड़ी पत्तियों को बड़े-बड़े होटल तथा घरों में मुख्य सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं । इसलिए इस फसल की पत्तियां सलाद के लिये बहुत प्रसिद्ध हैं । यह विदेशी फसल है जिसको विदेशों में बहुत उगाया जाता है ।

सलाद के सेवन से शरीर को अधिक मात्रा में खनिज पदार्थ तथा विटामिन्स मिलते हैं । यह विटामिन ‘ए’ का एक मुख्य स्रोत है । इसके अतिरिक्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्‌स, कैल्सियम तथा विटामिनस ‘ए’ व ‘सी’ दोनों ही प्राप्ति होते हैं ।

सलाद या काहु की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु

सलाद की फसल के लिए ठन्डे मौसम की जलवायु सबसे उत्तम होती है । अधिक तापमान होने पर बनने लगता है बीज आना शुरू हो जाता है और पत्तियों का स्वाद बदल जाता है । इसलिए लगातार 12 डी० सेग्रड से 15 डी० सेग्रेड तापमान उपयुक्त होता है । बीज अंकुरण के लिये भी तापमान 20-25 डी० सेग्रेड सबसे अच्छा होता है । 30 डी० सेग्रेड का तापमान के ऊपर बीजों का अंकुरण नहीं हो पाता ।

फसल हेतु उर्वरा शक्ति वाली भूमि सबसे अच्छी होती है । हल्की बलुई दोमट व मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है । भूमि में पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए ताकि नमी लगातार बनी रहे । पी.एच. मान 5.8-6.5 के बीच की भूमि में सफल उत्पादन होता है ।

सलाद के सेवन से शरीर को अधिक मात्रा में खनिज पदार्थ तथा विटामिन्स मिलते हैं । यह विटामिन ‘ए’ का एक मुख्य स्रोत है । इसके अतिरिक्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्‌स, कैल्सियम तथा विटामिनस ‘ए’ व ‘सी’ दोनों ही प्राप्ति होते हैं ।

सलाद या काहु की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु

सलाद की फसल के लिए ठन्डे मौसम की जलवायु सबसे उत्तम होती है । अधिक तापमान होने पर बनने लगता है बीज आना शुरू हो जाता है और पत्तियों का स्वाद बदल जाता है । इसलिए लगातार 12 डी० सेग्रड से 15 डी० सेग्रेड तापमान उपयुक्त होता है । बीज अंकुरण के लिये भी तापमान 20-25 डी० सेग्रेड सबसे अच्छा होता है । 30 डी० सेग्रेड का तापमान के ऊपर बीजों का अंकुरण नहीं हो पाता ।

फसल हेतु उर्वरा शक्ति वाली भूमि सबसे अच्छी होती है । हल्की बलुई दोमट व मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है । भूमि में पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए ताकि नमी लगातार बनी रहे । पी.एच. मान 5.8-6.5 के बीच की भूमि में सफल उत्पादन होता है ।

खेती की तैयारी एंव खादों उर्वरक की आवश्यकता 

भूमि को 2-3 बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 3-4 देशी हल या ट्रैक्टर से जुताई करनी चाहिए । खेत को ढेले रहित करके भुरभुरा कर लेना अच्छा है । प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए ।

सलाद के लिये खेत में गोबर की खाद 15-20 ट्रौली प्रति हेक्टर डालकर मिट्टी में मिलाना चाहिए तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए कि नत्रजन 120 किलो ,60 किलो फास्फेट तथा 80 किलो पोटाश प्रति हेक्टर देना चाहिए । नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा को खेत तैयार करते समय बुवाई से पहले मिलाना चाहिए । नत्रजन की शेष मात्रा को दो बार में खड़ी फसल पर पत्तियों को 2-3 बार तोड़ने के बाद छिड़कना चाहिए । इस प्रकार से उपज अधिक मिलती है ।

सलाद बगीचों की एक मुख्य फसल है । 3-4 टोकरी देशी खाद डालकर, यूरिया 600 ग्रा., 300 ग्रा. फास्फेट तथा 200 ग्रा. पोटाश 8-10 वर्ग-मी. में डालना चाहिए तथा यूरिया की आधी मात्रा को फसल के बड़ी होने पर 15-20 दिन के अन्तर से दो बार में छिड़कना चाहिए । ध्यान रहे कि दूसरी मात्रा पत्तियों को तोड़ने के बाद छिड़कनी चाहिए । इस प्रकार हरी पत्तियां बाद तक मिलती हैं तथा अधिक मिलती हैं ।

सलाद की प्रमुख जातियां

सलाद की निम्नलिखित मुख्य जातियां हैं जिनको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बोने की सिफारिश की जाती है ।

1. ग्रेट लेकस (Great Lakes), 2. चाइनेज यलो (Chinese Yellow) तथा स्लोवाल्ट (Slobolt) |

उपरोक्त जाति से अधिक मात्रा में पत्तियां तथा मुलायम तना मिलता है ।

बोने का समय एवं दूरी 

सलाद की बुवाई के पहले पौधशाला में पौध तैयार करते है । जब पौध 5-6 सप्ताह की हो जाती है तो खेत में रोप दिया: जाता है । बीज अगस्त-सितम्बर में लगाते हैं । रोपाई सितम्बर-अक्टूबर में की जाती है । कतारों की दूरी 30 सेमी० तथा पौधे से पौधे की 25 सेमी० रखते हैं ।

बीज की मात्रा 

बीज की मात्रा 500-600 ग्राम प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है । बीज को पौधशाला में क्यारियां बनाकर पौध तैयार करना चाहिए तथा बड़ी पौध को पंक्ति में लगाना चाहिए ।

सिंचाई एवं खरपतवार नियन्त्रण 

सलाद के खेत की सिंचाई रोपाई के तुरन्त हल्की करनी चाहिए । इसके बाद 10-12 दिन के अन्तर से करनी चाहिए । फसल में नमी का होना अति आवश्यक है । सिंचाई के बाद निकाई-गुड़ाई करते हैं तथा घास व खरपतवारोंको निकाल देना चाहिए ।

सलाद की कटाई 

सलाद की फसल जब बड़ी हो जाती है तो आवश्यकतानुसार पत्तियों को तोड़ते रहना चाहिए । मुलायम-मुलायम पत्तियों को तोड़ते रहना चाहिए जिससे कि पत्तियां कड़ी न हो पायें । कड़ी पत्तियों में पोषक-तत्वों की मात्रा कम हो जाती है तथा रेशे की मात्रा बढ़ जाती है । इसलिये चाहिए कि तुड़ाई या कटाई का विशेष ध्यान रखना अति आवश्यक है । इस प्रकार से 2-3 दिन के अन्तर से तुड़ाई करते रहना चाहिए । तुड़ाई या कटाई करते समय पत्तियों वाली शाखाओं को सावधानीपूर्वक तोड़ना या काटना चाहिए । तुड़ाई हाथों से तथा कटाई तेज चाकू या हंसिया से करनी चाहिए ।

पत्तियों की पैदावार (Yield)– सलाद की पत्तियों की पैदावार उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए 125- 150 किलो /हेक्टर तथा 600-700 बीज प्रति हेक्टर प्राप्त की जा सकती है ।

बीमारी एवं रोकथाम

1. पाउडरी मिल्ड्यू- इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर हल्के हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं । पत्तियों के निचले भाग में अधिकतर दीखते हैं । रोकथाम के लिये फसल को अगेता बोना चाहिए तथा रोगी पौधों को उखाड़ देना लाभदायक रहता है । अधिक बीमारी पर फंजीसाइड का प्रयोग करना चाहिए ।

2. मौजेक– ये रोग वायरस द्वारा लगता है जो कि पौध पर भी अधिक लगता है तथा पत्तियों पर इसका प्रकोप होता है । पत्ते व पौधे हल्के पीले से पड़ जाते हैं । नियन्त्रण के लिये बीज को उपचारित करके ही बोना चाहिए । रोगी पौधों को भी उखाड़कर जला देना चाहिए ।

रोगों से सलाद की फसल का बचाव 

सलाद की फसल पर अधिक कीट नहीं लगते लेकिन कभी-कभी एफिडस का प्रकोप होता है । जो कि अधिक क्षति पहुंचाता है । नियन्त्रण के लिये जिन पौधों पर कीट लगे हों तो उन्हें उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा अधिक आक्रमण होने पर 0.1% मेटासिसटोक्स या मैलाथीयान का घोल बनाकर 10-10 दिन के अन्तर पर  2-3 छिड़काव करना चाहिए । तत्पश्चात् आक्रमण रुक जाता है ।

सावधानी रहे कि दवा के छिड़कने के बाद पत्तियों को ठीक प्रकार से धोकर प्रयोग में लाना चाहिए ।



महत्वाची सूचना :- सदरची माहिती हि कृषी सम्राट यांच्या वैयक्तिक मालकीची असून आपणास इतर ठिकाणी ती प्रसारित करावयाची असल्यास सौजन्य:- www.krushisamrat.com असे सोबत लिहणे गरजेचे आहे.

सदर सत्रासाठी आपण ही आपल्या कडील माहिती / लेख इतर शेतकऱ्यांच्या सोयीसाठी krushisamrat1@gmail.com या ई-मेल आयडी वर किंवा 8888122799 या नंबरवर पाठवू शकतात. आपण सादर केलेला लेख / माहिती आपले नाव व पत्त्यासह प्रकाशित केली जाईल.



Tags: Cultivation Of Exotic VegetablesHeera AgroKrushi SamratSalad / Lettuce Cultivation
Team Krushi Samrat

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