भारत में फलो कि बागवानी बहुत लंबे समय से की जा रही है, लेकीन आज भी यह मान्यता है की, व्यावसायिक बागवानी एक चुनौती भरा उद्यम है | और इस के लिए यह बहुत जरूरी है की, बैग स्थापना से पहले, इससे सम्बन्धित सभी बिन्दुओ पर ध्यान रखते हुए ऐसी योजना बनाई जाए ताकि उससे प्रत्येक वर्ष अधिक उत्पादन एवं लाभ प्राप्त होता है, इस कार्य में आरम्भिक असावधानिया सदैव के लिए कठिनाई पैदा क्र सकती है, जिसे ठीक क्र पाना शायद बाद में संभव न हो | अत: इसके लिए सुविचारित योजना निर्माण की आवश्यकता होती है, जिससे की भविष्य में यह अधिक लाभप्रद सिद्ध हो सके |
बाग लगाने से पहले निम्न बिन्दुओ पर आवश्यक रूप से ध्यान देना चाहिए |
1) स्थान का चुनाव
2) उचित जाति एवं किस्मों का चुनाव
3) रेखांकन, निश्चित दुरी |
स्थान का चुनाव, रोपाई की दुरी, किस्मों और पौधों के चुनाव के प्रारंभ में की गयी भूल, निवेश पर प्रति किलो को पर्याप्त रूप से घटा सकती है |
स्थान का चुनाव
स्थान का अर्थ नगर, कस्बा, सडक या स्पष्ट उल्लेख के किसी अन्य सुविधाजनक स्थल की भौगोलिक स्थिति होती है | यह उस स्थल से भिन्न होता है जो ऐसे गुणों, जैसे-ऊँचाई, वृद्धी एवं विकास को प्रभावित करने वाले अन्य कारक, को सूचित करता है| प्रथम बार बाग लगाने के लिए क्षेत्र का चुनाव करने से पूर्व दिए गए क्षेत्र एवं स्थल की लिए परिवहन एवं विपणन सुविधाओं, शीतकालीन एवं बसंतकालीन तापमानों, आर्द्रता, मृदा एवं स्थलाकृत दशाओं और फल के एक निश्चित प्रकार की उपयुक्तता का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना महत्वपूर्ण होता है| ऐसे क्षेत्र जहाँ बागवानी सुस्थापित हो चूका हो और जहाँ जनसंख्या के बड़े केंद्र स्थित है, में फल उद्यम लगाने के अनेक लाभ होते है |
1) बड़े पैमाने पर आपूर्तियों एवं उपकरणों की सहकारी खरीद में निश्चित बचत होती है|
2) सरकारी सहायता, अनुदान इत्यादि आसानी से प्राप्त हो जाते है |
3) सभी प्रकार की तकनीकी जानकारी, दक्ष मजदूर, उपकरण इत्यादि आसानी से सुलभ हो जाते है |
4) मशीनरी की मरम्मत और सामान्य बागवानी आपूर्तियाँ आसानी से सुलभ हो जाती है |
5) सुस्थापित क्षेत्रों में पर्याप्त स्थानीय हित एवं प्रेरणा प्राप्त हो जाती है |
6) कार्यकुशल विक्रय संगोठनों से युक्त अधिक स्थायी बाजार होता है |
7) लदान शुल्क न्यूनतम तक बने रहते है |
8) व्यावसायिक भंडारण स्थान, फलों के लिए प्रसंस्करन संयन्त्र और उत्पादों के लिए विकास द्वारा उपलब्ध होते है |
अत: इस प्रकार की मृदाओ में सिंचाई एवं उर्वरक डालने का अन्तराल अधिक रखा जाता है | परन्तु अत्यधिक वर्षो वाले क्षेत्रो में जल भराव की समस्या उत्पन्न हो सकती है जिससे मृदा वायु की कमी हो जाती है जो कि फल वृक्षों की जड़ों पर बुरा प्रभाव डालती है | इसलिए इस तरह की भूमि में फल पौध लगाने से पहले सड़ी गोबर की खाद को समुचित मात्र में मिलाया जाना अति आवश्यक होता है | इसके विपरीत बलुई मिटटी में खाद और पानी दोनों ही अधिक मात्र देने पड़ते है | अधिक क्षारीय व् लवणीय तथा अम्लीय मृदा में बाग लगाने से पहले उन्हें क्रमशः जिप्सम व् चुने से उपचारित कर लेना चाहिए एवं मृदा की उपयुक्तता के आधार पर ही फल वृक्षों का चुनाव करना चाहिए | सामान्यत: फलों की बागवानी के लिए मृदा पी एच 7.0 के आस–पास होना चाहिए परन्तु 7.0 से अधिक पी एच होने की दशा में खजूर, बेर, आंवला, अमरुद, करौंदा, बेल आदि वृक्षों को अच्छी देख-रेख के साथ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है |
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