फसलों की अच्छी पैदावार और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने के लिए किसान भाई अक्सर रासायनिक खाद यानि उर्वरकों का प्रयोग करते आ रहे हैं। होता यह है कि बार-बार उपजाऊ मिट्टी से फसल लेने के कारण धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम होने लगती है। इसीलिए खेत की मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए मिट्टी की जाँच समय-समय पर करते रहनी चाहिए। सरकार ने भी सॉयल हेल्थ कार्ड बनाकर मिट्टी में पोषक तत्वों की कितनी मात्रा है और उनमें क्या कमी आयी है, इन बातों को ध्यान में रखते हुए यह देखा है कि कौन सा उर्वरक कैसा है और उसकी गुणवत्ता के बारे में जानना कितना जरूरी है तथा उसका कैसा उपयोग हो व उसकी क्षमता कैसे बढ़ाई जाये ?
आज से चार-पांच दशक पहले तक मिट्टी में उपजाऊ तत्वों की मात्रा काफी अधिक थी, जिससे फसलों को उचित व प्रर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मिल जाते थे। लेकिन अब ऐसी फसलों से जिनमें अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियां और अनुचित मृदा प्रबंध से खेत की उर्वरा शक्ति कम होने लगी, खाद ( उर्वरक ) की आवश्यकता है, उसके क्या गुण हैं और उसकी उपयोग क्षमता को कैसे बढ़ायें, इस बारे में यहाँ जानकारी दी जा रही है, जिसका लाभ किसान भाई उठा सकते हैं।
हमारे देश की मिट्टी में आज से 4-5 दशक पूर्व जीवांश की अधिकता थी जिससे हमारी फसल को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मिल जाते थे। लेकिन अब अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों और अनुचित मृदा प्रबन्ध से खेत की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। जिसके कारण किसान भाई अपने खेतों में रासायनिक उर्वरकों का अधिक मात्रा में प्रयोग कर रहे है। फसलों की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त आवशयक पोषक तत्व और इनकी उपयोग क्षमता को बढ़ाने के उपाय अग्रलिखित है:
किसी भी फसल के बेहतर विकास के लिए निम्न पोषक तत्वों की आवश्यकता है:
i. प्रमुख पोषक तत्व: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश
ii. द्वितीयक पोषक तत्व: कैल्शियम, सल्फर और मैग्नीशियम
iii. सूक्ष्म पोषक तत्व: जिंक, लोहा, मैगनीज, बोरॉन, कॉपर, मॉलीब्लेडनम्, क्लोरीन, आदि।
नायट्रोजन
मुख्यत:नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए यूरिया, फोस्फोरस की पूर्ति के लिए डीएपी, एसएसपी या एनपीके और पोटाश की पूर्ति के लिए एमओपी या एनपीके का प्रयोग किया जाता है। वहीं ज़िंक की पूर्ति के ज़िंक सल्फ़ेट आदि का प्रयोग किया जाता है। इन उर्वरकों की गुणवत्ता की जांच निम्न प्रकार कर सकते है।
यूरिया:यह सफेद चमकदार, लगभग समान आकार के गोल दाने होते हैं। यह पानी में पूर्णतया घुलनशील होता है। इसके घोल को छूने पर ठंडक का अनुभव होता है। इसके दानों को गर्म तवे पर रखने पर वह पिघल जाते है और आंच तेज करने पर कोई अवशेष नही बचता है।
डीएपी:इसके दाने सख्त, भूरे, काले या बादामी रंग के होते है। इसकी गुणवत्ता की पहचान के किए डी.ए.पी. के कुछ दानों को हाथ में लेकर उसमे चुना मिलकर तम्बाकू की तरह रगड़ने पर इसमें से तीक्ष्ण गन्ध निकलती है, जिसे सूंघना काफी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा डीएपी के कुछ दानों को पक्के फर्श पर रगड़ने पर वह टूटते नहीं केवल रगड़ खाते है। यदि इसके दानों को तवे पर धीमी आंच में गर्म किया जाए तो इसके दाने फूल जाते है।
फोस्फोरस
एसएसपी:यह सख्त, दानेदार, भूरे, काले या बादामी रंग के होते है। यह चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध होता है। इस दानेदार उर्वरक की मिलावट मुख्यत: डी.ए.पी. व एन.पी.के. मिक्चर उर्वरकों के साथ की जाने की सम्भावना बनी रहती है।
पोटेशियम
एमओपी:यह सफेद पिसे नमक तथा लाल मिर्च जैसा मिश्रण होता है। इसके कण नम करने पर आपस में चिपकते नहीं है। पानी में घोलने पर खाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरता है।
अन्य
जिंक सल्फेट:जिंक सल्फेट में मैंग्नीशिम सल्फेट प्रमुख मिलावटी रसायन है। भौतिक रूप से समानता के कारण नकली असली की पहचान कठिन होती है। इसकी गुणवत्ता की जाँच के लिए इसके घोल को डी.ए.पी. के घोल में मिलाने पर थक्केदार अवक्षेप बन जाता है। मैग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता। इसके अलावा जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक का घोल मिलाने पर सफेद, मटमैला मांड़ जैसा अवक्षेप बनता है, जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूर्णतया घुल जाता है। यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैंग्नीशिम सल्फेट है तो अवक्षेप नहीं घुलेगा।
उर्वरक के उचित प्रयोग और अधिक लाभ के लिए संतुलित मात्रा में उचित समय पर प्रयोग करना बहुत जरूरी है। प्रयोग किए गए उर्वरक से फसल अधिक से अधिक उपज दे और कम से कम पोषक तत्वों की हानि हो इसके लिए हमें उर्वरकों की उपयोग क्षमता को बढ़ाना होगा। उर्वरकों की उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए अग्रलिखित बातों का ध्यान रखें।
सही उर्वरक का चुनाव:
- उर्वरकों का चुनाव मृदा परीक्षण के आधार पर करें। जिस तत्व की कमी हो उस मृदा में उसी तत्व की पूर्ति के लिए उर्वरक का प्रयोग करें।
- नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए नीम लेपित यूरिया का प्रयोग करें।
- मृदा में फास्फोरस की अत्यधिक कमी की दशा में पानी में घुलनशील फास्फोरस युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें।
- कम अवधि की फसलों का शीघ्र उपलब्धता वाले उर्वरकों एवं लम्बी अवधि की फसलों में धीरे-धीरे पोषक तत्व प्रदान करने वाली खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। लम्बी अवधि की फसलों में साइट्रेट घुलनशील एवं कम अवधि की फसलों में पानी में घुलनशील फास्फेटिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
- खेत में जो फसल उगाने जा रहे हैं, उससे पहले कौन-सी फसल उगाई गई थी एवं उसमें कितनी मात्रा में खाद का प्रयोग किया गया था, खेत खाली था या नहीं, आदि बातों को ध्यान में रखते हुए खाद एवं उर्वरकों का चुनाव करें।
- कम नमी वाली मृदाओं में नाइट्रेट युक्त नाइट्रोजनधारी उर्वरकों तथा सिंचित एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मृदा में अमोनिकल या एमाइडयुक्त नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
- नम क्षेत्रों में कैल्शियम एवं मैगनिशियम युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें। क्योंकि इस दशा में मृदा में इनकी कमी हो जाती है।
- अम्लीय मृदाओं में क्षारीय प्रभाव छोड़ने वाले नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें साथ ही फोस्फोरस की पूर्ति के लिए घुलनशील फास्फेटिक उर्वरकों का प्रयोग करें। लवणीय मृदाओं में अम्लीय पक्रृति वाले उर्वरकों का प्रयोग करें।
- रेतीली मृदाओं में जैविक खादों का अधिक से अधिक प्रयोग करें जिससे कि पोषक तत्वों की निक्षालन द्वारा कम से कम हानि हो तथा ऐसी मृदाओं में नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें। चिकनी मृदा में जैविक खादों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए।
उर्वरकों का प्रयोग (कब और कैसे):
- गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद जैसे कार्बनिक खादों को बुवाई से पहले खेत में अच्छे ढंग से मिला देना चाहिए।
- फास्फेटिक एवं पोटाशिक उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में प्रयोग कर अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।
- नाइट्रोजन, फास्फेटिक एवं पोटेशिक उर्वरकों को बुवाई के समय खेत में बीज से 3-4 सेंमी नीचे तथा 3-4 सेंमी बगल में डालना चाहिए। फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैगनीशियम, लोहा व जस्ता को सदैव पौधों की जड़ो के पास प्रयोग करें।
- उर्वरकों को घोल के रूप में खड़ी फसल पर छिड़कने से पोषक तत्वों को निक्षालन, गैसीय, स्थिरीकरण, डिनाइट्रीकरण आदि द्वारा होने वाली हानि से बचाया जा सकता है।
उर्वरक की मात्रा निर्धारण :
- धान-गेहूं के फसल-चक्र में यदि गेहूं में सिफारिश के अनुसार उर्वरक डाले गए हैं तो आगे बोई जाने वाली धान की फसल में फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा नहीं डालनी चाहिए। धान की फसल में नीमलेपित या जस्तालेपित नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
- रबी की फसलों के पहले यदि खेत में हरी खाद की संतोषजनक फसलें ली गई हैं और समय पर मिट्टी में दबाई गई हैं तो रबी की बोई जाने वाली फसल में नाइट्रोजन की 40 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से कम कर देनी चाहिए।
- अगर खेत में गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग किया गया है तो आगे बोई जाने वाली फसल में नाइट्रोजन 5 किग्रा, फास्फोरस 2.5 किग्रा एवं पाटेाश 2.5 किग्रा प्रति टन के हिसाब से फसल के लिए सिफारिश की गई नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की कुल मात्रा से कम कर देनी चाहिए।
- फसल की उचित समय पर की गई बुवाई उर्वरक उपयोग क्षमता को बढ़ाती है। फसलों में पंक्ति-से-पंक्ति एवं पौधे-से-पौधे की उचित दूरी रखने पर उर्वरकों का ज्यादा उपयोग होता है।
महत्वपूर्ण सूचना :- यह जानकारी कृषी सम्राट की वैयक्तिक मिलकीयत है इसे संपादित कर अगर आप और जगह इस्तमाल करना चाहते हो तो साभार सौजन्य:- www.krushisamrat.com ऐसा साथ में लिखना जरुरी है !

इस शृंखला के लिये आप भी अपनी जानकारी / लेख दुसरे किसान भाईयों तक पहुंचाने के लिये kushisamrat1@gamial.com इस ई -मेल आयडी पर अथवा 8888122799 इस नंबर पर भेज सकते है l आपने भेजी हुई जानकारी / लेख आपके नाम और पते के साथ प्रकाशित कि जायेंगी l