परिचय :
बांस प्रकृति की अदभुत देन है, बांस की मानव जीवन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जिसमें कल्मों भूमिगत राइजोम से उत्पन्न होती है। जिसकी प्रक्रति वृक्ष की तरह होती है। इस धरती पर यह सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाला पौधा है। बांस को काष्ठीय रूप में वर्गीकृत किया जाता है। बांस की आनुवांशिक विविधता की सम्पन्नता के सन्दर्भ में भारत विश्व का दूसरा देश है यहाँ 75 वंशक्रमों (जेनेरा) के तहत कुल 136 प्रजातियाँ पाई जाती है। इसकी परिधि में वन क्षेत्र का लगभग 8.96 मिलियन हेक्टेयर आता है जो देश कुल वन क्षेत्र के 12.8% के समतुल्य है । एक प्रभावशाली तरीके के तौर पर बांस के बारे में जागरूकता में बढ़ोतरी हुई है इस पेड़ के 1500 से ज्यादा उपयोग दर्ज है (पालना-झुला से लेकर ताबूत तक) तथा इसमें रोजगार तथा आय सृजन और गरीब ग्रामीणों के पोषण में सुधार की व्यापक संभावनाएं मौजूद है।
बांस के तीन प्रकार हैं-
1) संधिताक्षी (सिम्पोडियल) लंबी ग्रीवा सहित संधिताक्षी (मैकोलान्ना बेसीफेरा)
2) एकलाक्षी (मोनोपोडीयल
3) एम्फोडिय। वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा दस प्रमुख प्रजातियाँ की पहचान की गई है जिसमें निम्नलिखित शामिल है:
वर्गीकरण-
भारत में पाए जानेवाले विभिन्न प्रकार के बाँसों का वर्गीकरण डॉ॰ ब्रैंडिस ने प्रकंद के अनुसार इस प्रकार किया है :
(क) कुछ में भूमिगत प्रकंद (rhizome) छोटा और मोटा होता है। शाखाएँ सामूहिक रूप से निकलती हैं। उपर्युक्त प्रकंदवाले बाँस निम्नलिखित हैं:
- बैब्यूसा अरंडिनेसी- हिंदी में इसे वेदुर बाँस कहते हैं। यह मध्य तथा दक्षिण-पश्चिम भारत पाया जानेवाला काँटेदार बाँस है। 30 से 50 फुट तक ऊँची शाखाएँ 30 से 100 के समूह में पाई जाती हैं। बौद्ध लेखों तथा भारतीय औषधि ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
- बैंब्यूसा स्पायनोसा- बंगाल, आसाम तथा बर्मा का काँटेदार बाँस है, जिसकी खेती उत्तरी-पश्चिमी भारत में की जाती है। हिंदी में इसे बिहार बाँस कहते हैं।
- बैंब्यूसा टूल्ला- बंगाल का मुख्य बाँस है, जिसे हिंदी में पेका बाँस कहते हैं।
- बैंब्यूसा वलगैरिस(Bambusa vulgaris) – पीली एवं हरी धारीवाला बाँस है, जो पूरे भारत में पाया जाता है।
- डेंड्रोकैलैमसके अनेक वंश, जो शिवालिक पहाड़ियों तथा हिमालय के उत्तर-पश्चिमी भागों और पश्चिमी घाट पर बहुतायत से पाए जाते हैं।
(ख) कुछ बाँसों में प्रकंद भूमि के नीच ही फैलता है। यह लंबा और पतला होता है तथा इसमें एक एक करके शाखाएँ निकलती हैं। ऐसे प्रकंदवाले बाँस निम्नलिखित हैं :
(1) बैंब्यूसा नूटैंस (Babusa nutans) – यह बाँस 5,000 से 7,000 फुट की ऊँचाई पर, नेपाल, सिक्किम, असम तथा भूटान में होता है। इसकी लकड़ी बहुत उपयोगी होती है।
(2) मैलोकेना (Melocanna) – यह बाँस पूर्वी बंगाल एवं वर्मा में बहुतायत से पाया जाता
बाँस की खेती-
बाँस बीजों से धीरे धीरे उगता है। मिट्टी में आने के प्रथम सप्ताह में ही बीज उगना आरंभ कर देता है। कुछ बाँसों में वृक्ष पर दो छोटे छोटे अंकुर निकलते हैं। 10 से 12 वर्षों के बाद काम लायक बाँस तैयार होते हैं। भारत में दाब कलम के द्वारा इनकी उपज की जाती है। अधपके तनों का निचला भाग, तीन इंच लंबाई में, थोड़ा पर्वसंधि (node) के नीचे काटकर, वर्षा शु डिग्री होने के बाद लगा देते हैं। यदि इसमें प्रकंद का भी अंश हो तो अति उत्तम है। इसके निचले भाग से नई नई जड़ें निकलती हैं।
बाँस का जीवन 1 से 50 वर्ष तक होता है, जब तक कि फूल नहीं खिलते। फूल बहुत ही छोटे, रंगहीन, बिना डंठल के, छोटे छोटे गुच्छों में पाए जाते हैं। सबसे पहले एक फूल में तीन चार, छोटे, सूखे तुष (glume) पाए जाते हैं। साधारणत: बाँस तभी फूलता है जब सूखे के कारण खेती मारी जाती है और दुर्भिक्ष पड़ता है। शुष्क एवं गरम हवा के कारण पत्तियों के स्थान पर कलियाँ खिलती हैं। बहुत से बाँस एक वर्ष में फूलते हैं। ऐसे कुछ बाँस नीलगिरि की पहाड़ियों पर मिलते हैं। भारत में अधिकांश बाँस सामुहिक तथा सामयिक रूप से फूलते हैं। इसके बाद ही बाँस का जीवन समाप्त हो जाता है। सूखे तने गिरकर रास्ता बंद कर देते हैं। अगले साल बारीश के बाद बीजों से नई कलमें फूट पड़ती हैं और जंगल फिर हरा हो जाता है। अगर फूल सही समय खिले तो काट छाँटकर खिलना रोका जा सकता है।
जलवायु और मिट्टी-
इसके लिए उपयुक्त जलवायु तापमान-8-36°सेल्सियस, वर्षा-1270 मि.मी. उच्च आद्रता वाले प्रदेशों मे अच्छे वृद्धि होता है।
अच्छी जल निकासी वाले सभी प्रकार के मिट्टी मे उगे जाते हैं। वजनदार मिट्टी मे यह नही होते हैं
स्थलाकृति और आकारिकी –
1200 मी.ऊँचाई पर उगे जाते है।
यह लम्बा कलगीगार,घना टफ होता है,कल्म (Culms) उजले हरा चिकनी,15-30मी. लम्बा तथा मोटा-15-18 सेमी. होता है। प्रकन्द तथा जड दोनों जमीन के नीचे रहते है। कारेओपसिस गोल तथा 9-8मिमी. लम्बा होता है।
खराब जमीन का भी कर सकेंगे उपयोग –
खास बात ये है कि बांस की खेती के लिए बंजर, लाल मुरम की बेकार पड़ी जमीन का उपयोग भी किसान कर सकते हैं। इसमें पानी कम लगता है। यदि ज्यादा बारिश हो जाए तो बांस को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
उपयोग :
कागज बनाने के लिए बाँस उपयोगी साधन है। बाँस का कागज बनाना चीन एवं भारत का प्राचीन उद्योग है। चीन में बाँस के छोटे बड़े सभी भागों से कागज बनाया जाता है।
बल्ली, सिढी, टोकरी, चटाई, आदि बनाने मे काम आता है। कोमल प्ररोह खाएं जाते हैं। कागज बनाने मे भी काम आता है।