लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है, जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन की एक गांठ में कई कलियाँ पाई जाती है जिन्हे अलग करके एवं छीलकर कच्चा एवं पकाकर स्वाद एवं औषधीय तथा मसाला प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखेस्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलसन ए ऐजोइन इत्यादि। इस कहावत के रूप में बहुत आम है “एक सेब एक दिन डॉक्टर को दूर करता है” इसी तरह एक लहसुन की कली एक दिन डॉक्टर को दूर करता है यह एक नकदी फसल है तथा इसमें कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं । इसका उपयोग आचार, चटनी, मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगन्ध तथा स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की सब्जियों एवं माँस के विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है ।
उन्नत किस्मे
जी 1
इस किस्म के लहसुन की गांठे सफेद, सुगठित व मध्यम के आकार की होती हैं। हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं। यह किस्म बिजाई के 160 – 180 दिनों में पक कर तैयार होती है। इस की पैदावार 40 से 45 क्विंटल प्रति एकड़ है।
एजी 17
यह किस्म हरियाणा के लिए अधिक माकूल है। इस की गांठे सफेद व सुगठित होती है। गांठ का वजन 25-30 ग्राम होता है। हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं। यह किस्म बिजाई के 160-170 दिनों में पक कर तैयार होती है। पैदावार लगभग 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
जलवायु
लहसुन को ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है वैसे लहसुन के लिये गर्मी और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहे तो उत्तम रहता है अधिक गर्मी और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिये उत्तम नहीं रहते है छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिये अच्छे होते है इसकी सफल खेती के लिये 29.35 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70% आद्रता उपयुक्त होती है |
भूमि एवं खेत की तैयारी :-
इसके लिये उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है। भारी भूमि में इसके कंदों का भूमि विकास नहीं हो पाता है। मृदा का पी. एच. मान 6.5 से 7.5 उपयुक्त रहता है। दो – तीन जुताइयां करके खेत को अच्छी प्रकार समतल बनाकर क्यारियां एवं सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिये।
बिजाई का समय
लहसुन की बिजाई का सही समय सितंबर के आखिरी हफ्ते से अक्टूबर तक होता है।
बीज कि मात्रा
लहसुन की अधिक उपज के लिए डेढ़ से 2 क्विंटल स्वस्थ कलियाँ प्रति एकड़ लगती हैं। कलियों का व्यास 8-10 मिली मीटर होना चाहिए।
बिजाई कि विधी
बिजाई के लिए क्यारियों में कतारों दूरी 15 सेंटीमीटर व कतारों में कलियों का नुकीला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए और बिजाई के बाद कलियों को 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की तह से ढक दें।
खाद व उर्वरक
खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर प्रति हेक्टेयर 20-25 टन पकी गोबर या कम्पोस्ट या 5-8 टन वर्मी कम्पोस्ट, 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके लिए 175 कि.ग्रा. यूरिया, 109 कि.ग्रा., डाई अमोनियम फास्फेट एवं 83 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश की जरूरत होती है। गोबर की खाद, डी.ए. पी. एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला देनी चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा को खडी फसल में 30-40 दिन बाद छिडकाव के साथ देनी चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा का उपयोग करने से उपज मे वृद्धि मिलती है। 25 कि.ग्रा. जिन्क सल्फेट प्रति हेक्टेयर 3 साल में एक बार उपयोग करना चाहिए । टपक सिचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग करने से उपज में वृद्धि होती है जल घुलनशील उर्वरकों का प्रयोग टपक सिर्चाइ के माध्यम से करें ।
सिंचाई
लहसुन की गांठों के अच्छे विकास के लिए सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतर पर और गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई होनी चाहिए।
अन्य कृषि क्रियाऍ व खरपतवार नियंत्रण
लहसुन की जड़ें कम गहराई तक जाती हैं। लिहाजा खरपतवार की रोकथाम हेतु 2-3 बार खुरपी से उथली निराई गुड़ाई करें। इस के अलावा फ्लूक्लोरालिन 400-500 ग्राम (बासालिन 45 फीसदी, 0.9-1.1 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई से पहले छिड़काव करें या पेंडीमैथालीन 400-500 ग्राम (स्टोम्प 30 फीसदी, 1.3-1.7 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर बिजाई के 8-10 दिनों बाद जब पौधे सुव्यवस्थित हो जाएँ और खरपतवार निकलने लगे, तब प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
गांठो कि खुदाई
फसल पकने के समय जमीन में अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए, वर्ना पत्तियाँ फिर से बढ़ने लगती हैं और कलियाँ का अंकुरण हो जाता है। इस से इस का भंडारण प्रभावित हो सकता है।
पौधों की पत्तियों में पीलापन आने व सूखना शुरू होने पर सिंचाई बंद कर दें। इस के कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई करें। फिर गांठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखाने के बाद पत्तियों को 2-3 सेंटीमीटर छोड़ कर काट दें या 25-30 गांठों की पत्तियों को बांध कर गूछियों बना लें।
भंडारण
लहसुन का भंडारण गूच्छीयों के रूप में या टाट की बोरियों में या लकड़ी की पेटियों में रख कर सकते हैं। भंडारण कक्ष सूखा व हवादार होना चाहिए। शीतगृह में इस का भंडारण 0 से 0.2 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान व 65 से 75 फीसदी आर्द्रता पर 3-4 महीने तक कर सकते हैं।
पैदावार
इस की औसतन उपज 4-8 टन प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है।
प्रमुख रोग :
बैंगनी धब्बा – बैंगनी धब्बा रोग (पर्पिल ब्लाच) इस रोग के प्रभाव से प्रारम्भ में पत्तियों तथा उर्ध्व तने पर सफेद एवं अंदर की तरफ धब्बे बनते है, जिससे तना एवं पत्ती कमजोर होकर गिर जाती है। फरवरी एवं अप्रेल में इसका प्रक्रोप ज्यादा होता है।
रोकथाम एवं नियंत्रण
1 .मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 2.5 ग्राम दवा के सममिश्रण से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुआई करें।
2. मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें।
3. रोग रोधी किस्म जैसे जी-50 , जी-1, जी 323 लगावें।
झुलसा रोग – रोग से प्रक्रोप की स्थिति में पत्तियों की उर्ध्व स्तम्भ पर हल्के नारंगी रंग के धब्बे बनते है ।
नियंत्रण
मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें अथवा कापर आक्सीक्लोराईड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें।
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