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Home शेती

फल और सब्जियों के खराब होने के कारण

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
January 4, 2019
in शेती
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फल और सब्जियों के खराब होने के कारण
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यह एक कटु सत्य है कि ताजा फलों एवं सब्जियों को सामान्य दशाओं में अधिक लम्बे समय तक सही हालत में नहीं रखा जा सकता है, कुछ समय के बाद से सड़ने गलने लगती हैं। एक अनुमान के अनुसार फलों एवं सब्जियों के कुल उत्पादन का लगभग 30-40 प्रतिशत नष्ट हो जाता है, जिसका खमीआजा बेचारे बागवानों व कृषकों को उठाना पड़ता है। फल एवं सब्जियों में खराबी के दो प्रमुख कारण होते हैं, जिनकी जानकारी नीचे दी गई है-

प्रकिण्व: प्रकिण्व एक जटिल रचनावाले रसायन है, जो प्रत्येक जीवित वस्तु में पाए जाते हैं,     भोजन की पाचान क्रिया इन प्रकिण्वों द्वारा ही सम्पन्न होती है। फलों को पकाने के लिए भी ये प्रकिण्व ही जिम्मेदार है, जो कच्चे फलों में मौजूद प्रोटोपैक्टिन को पैक्टिन में परिवर्तित कर देते हैं, जो फल के अधिक पकने पर पैक्टिक एसिड में बदल जाता है। उबलते पानी के तापमान (100 डिग्री से.ग्रे.) पर प्रकिण्व निष्क्रिय हो जाते हैं।

सूक्ष्मजीव: सूक्ष्मजीव वायु, मिट्टी, पानी यानि सब जगह फैले होते हैं। ये इतनी सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें आँख से नहीं देखा जा सकता है इनको केवल सूक्ष्मदर्शी यंत्र के द्वारा ही देखा जा सकता है ये तीन प्रकार के होते हैं जिनका उल्लेख नीचे किया गया है-

1- खमीर (Yeast): यह एक प्रकार की सूक्ष्म वनस्पति है, जिसमें केवल एक कोशिका होती है। इसकी कोशिका गोल या अण्डाकार होती है। इस वनस्पति में हरापन नहीं होती है, जिसके कारण यह अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकती है अतः इसे जीवित रहने और वृद्धि करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

खमीर के प्रवर्धन हेतु शक्कर या स्टार्च की आवश्यकता होती है। यह चीनी के 10-20 प्रतिशत घोल में खूब उगता है, परन्तु ६६ प्रतिशत चीनी के घोल में यह नहीं उग पाता है। खमीर की प्रक्रिया से खाद्य पदार्थों के कार्बोहाइड्रेट (शक्कर व स्टार्च) ऐल्कोहल और कार्बन डाई-ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं। इनकी कोशिकाओं में १८ प्रतिशत से अधिक ऐल्कोहल में या कम तापमान पर वृद्धि करने में असमर्थ होती है। २४-३० डिग्री से.ग्रे. तापमान पर यह तीव्र गति से बढ़ता है, पर इसके उगने हेतु पर्याप्त नमी का होना नितान्त आवश्यक है। इसके उगने से खाद्य पदार्थ में विष उत्पन्न नहीं होता है। ६५ डिग्री से.ग्रे. तापमान पर लगभग १० मिटन तक गर्म  करने पर यह नष्ट हो जाता है।

खमीर का उपयोग शराब, साइड बियर, सिरका और डबल रोटी निर्माण में प्रचुर मात्रा में किया जाता है।

2- फफूँदी (Fungus): यह बहुकोशीय सूक्ष्म वनस्पति है, इसमें भी हरापन नहीं पाया जाता है इसलिए यह भी अपने भोजन के लिए अन्य पदार्थों पर निर्भर करती है। वर्षा ऋतु में श्वेत, श्याम, नीले एवं हरे रंग की फफूँदीयाँ खाने पीने की वस्तुओं पर उग आती है। इसके अतिरिक्त अधिक पके फल एवं सब्जियों, अचार, जैम, जैली डबलरोटी आदि पर बहुधा लग जाती है। इसकी रूई जैसी बढ़वार को बिना सूक्ष्मदर्शी यंत्र के देखा जा सकता है। इसके रूई जैसे कवकजाल को अंग्रेजी में ‘माइसीलियम’ कहते हैं। इसमें लम्बे धागों के सामान अनेक शाखाएं होती हैं।

यह फफूँदियों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा जाए तो वे पेड़ के समान दिखाई देती हैं इनमें गोलाकार सिरे होते हैं, जिनमें फफूँदी के जीवाणु बनते हैं। जब बीजाणुओं की थैली फट जाती है, तो बीजाणु वायु में उड़ने लगते हैं। इनके बीजाणु कई रंगों के होते है, जैसे भूर, नीले, काले आदि। ये बीजाणु जब डबल रोटी, अचार, मुरब्बा आदि पर गिरते हैं तो वहीं उगकर जाल फैला देते हैं।

फफूँदी ४-१० डिग्री से.ग्रे. तक के कम तापमान पर १० मिनट तक गर्म करने पर फफूंदी नष्ट हो जाती है। अधेरे स्थानों पर फफूंदी तीव्र गति से बढ़ती है, लेकिन धूप से नष्ट हो जाती है। सूर्य की रोशनी में पराबैंगनी किरणें होती है, जो फफूँदी को नष्ट कर देती है।

  1. जीवाणु:यह भी एककोशीय सूक्ष्मजीव है, जो खमीर और फफूँदियों की तुलना में अधिक छोटे होते हैं। ये केवल सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा ही देखे जा सकते हैं। इनमें भी हरापन नहीं होता है इसलिए इन्हें भोजन के लिए अन्य पदार्थों पर निर्भर रहना पड़ता है। ये अत्यन्त तीव्रगति से बढ़ते हैं पर वायु, जल, मक्खियों और अन्य साधनों से पहुंचते हैं। २४ डिग्री से २७ डिग्री से.ग्रे. तापमान इनकी वृद्धि हेतु सबसे अनुकूल होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में इनकी कोशीकाएं बीजाणुओं में परिवर्तित हो जाती है, जिनमें अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता होती है।

जीवाणु दो प्रकार के होते हैं जिनका उल्लेख नीचे किया गया है-

क) वायुजीवीः ये जीबाणु वायु की उपस्थिति में उगते हैं, अतः इन्हें वायुजीवी कहते हैं।

ख) अवायुजीवी: ये जीबाणु वायु की अनुपस्थिति में तीव्र गति से उगते हैं, अतः इन्हें अवायुजीवी कहते हैं।

खटासमुक्त खाद्य पदार्थों के जीवाणु पानी के उबलने के तापमान पर सुगमता से नष्ट नहीं होते हैं, उन्हें नष्ट या निष्क्रिय करने हेतु 116 डिग्री से.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। इसलिए सभी सब्जियों का संसाधन प्रेशर कुकर में 10-15 पौंड दबाव पर किया जाता है।

 

सदर सत्रासाठी आपण ही आपल्या कडील माहिती / लेख इतर शेतकऱ्यांच्या सोयीसाठी krushisamrat1@gmail.com या ई-मेल आयडी वर किंवा   8888122799 या नंबरवर पाठवू शकतात. आपण सादर केलेला लेख / माहिती आपले नाव व पत्त्यासह प्रकाशित केली जाईल

 

 

 

Tags: Due to the worsening of fruits and vegetablesफल और सब्जियों के खराब होने के कारण
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