यह एक पत्ती वाली सब्जी है जिसको वर्षीय पौधे के रूप में देखा गया है । यह अधिकतर एक वर्ष में ही समाप्त हो जाता है । इसका पौधा पालक के समान होता है । इसके पत्ते सुन्दर, चिकने तथा हरे रंग के होते हैं लेकिन पत्तियों का नीचे से डन्ठल कुछ सफेद सा होता है तथा धारियां पतली-पतली होती हैं । इस सब्जी से अधिक पोषक-तत्व प्राप्त होते हैं । यह सब्जी शरद ऋतु की है जिसको विभिन्न रूप में खाया जाता है । यह हरी सब्जी के रूप में मुख्य हैं । इसका पौधा व पत्तियां चुकन्दर के पत्तों के आकार के समान थोड़ा-थोड़ा मुड़ा हुआ होता है । इसका प्रयोग पकौड़े बनाने, भूजी तथा मिक्स सब्जी के रूप में किया जाता है ।
स्विस चार्ड की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु
यह सब्जी सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है लेकिन सर्वोत्तम भूमि दोमट या हल्की बलुई दोमट रहती है । जीवांशयुक्त भूमि जिसमें जल-निकास की उचित व्यवस्था हो तथा पी.एच. मान 6.5-7.5 के बीच का उत्तम होता है । शरद ऋतु की फसल है । ठन्ड मौसम अधिक उचित रहता है लेकिन पाले वाला मौसम उचित नहीं रहता । यह फसल 20-30 डी०सेग्रेड तापमान पर अधिक वृद्धि करती है तथा पत्ते अधिक बनते हैं ।
स्विस चार्ड की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी
स्विस-चार्ड हेतु खेत की मिट्टी की किस्म के अनुसार जुताई करें । इसकी 3-4 जुताई पर्याप्त होती हैं । लेकिन भारी या हल्की चिकनी मिट्टी को भुरभुरा करने हेतु एक-दो जुताई की और आवश्यकता पड़ती है । इस प्रकार से खेत की तैयारी हेतु मिट्टी का भुरभुरापन देख लें । खेत का घास रहित होना अति आवश्यक है । खेती जुताई पहली मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर हैरों से अवश्य करें जिससे पहली फसल के अवशेष नष्ट हो सकें ।
स्विस चार्ड की उन्नत किस्में
स्विस-चार्ड की उन्नत किस्में अधिक नहीं हैं लेकिन फिर एक किस्म है जो अधिकतर उगायी जाती है तथा अन्य किस्में जो स्थानीय मिले लगा सकते हैं ।
फोर्ड हुक- किस्म का उपयोग अधिक किया जाता है । जो सफलतापूर्वक उत्तरी भारत या दिल्ली के निकट उगायी जा सकती है ।
खाद एवं उर्वरकों की मात्रा
सड़ी गोबर की खाद की मात्रा 10-12 टन प्रति हैक्टर तथा नत्रजन 120 किलो, फास्फोरस 80 किलो तथा पोटाश 60 किलो प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है क्योंकि पत्ती वाली सब्जी होने से नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अन्तिम जुताई पर खेत में भली-भांति देनी चाहिए तथा शेष नत्रजन को 2-3 बार में पत्तियों को तोड़ने के पश्चात् टोप-ड्रेसिंग के रूप में देते रहना चाहिए ।
बीज की मात्रा
बीज की मात्रा के लिये बुवाई की विधि पर निर्भर करता है । बीज की पौध बनाने हेतु 4-5 किलो प्रति हैक्टर तथा सीधे बोने के लिये 6-8 किलो प्रति हैक्टर की आवश्यकता पड़ती है । ध्यान रहे कि बीज कटा, कच्चा व अधपका हुआ न हो ।
बुवाई का समय एवं विधि
बुवाई का उचित समय उत्तरी भारत के लिये सितम्बर-अक्टूबर तथा पहाड़ी क्षेत्रों के लिये मार्च-अप्रैल का माह उत्तम होता है । तापमान का ध्यान रखें ।
बुवाई की विधि
मुख्यत: पौध के लिये पौधशाला में बुवाई करके बीज को 1-2 सेमी. की दूरी पर पंक्तियों में बोते हैं तथा बीज से बीज की दूरी 2-3 मि.मी. रखते हैं । पौधशाला में खाद का प्रयोग करें जिससे पौधे स्वस्थ प्राप्त हों । यह विधि पौधे स्वस्थ प्राप्त करने के लिए अधिक अपनाई जाती है तथा जब पौधे में दो-तीन पत्तियां निकल आयें तो रोपाई तैयार क्यारियों में कर दी जाती है ।
पौध की रोपाई करना एवं दूरी
तैयार पौध को खेत में समान दूरी पर जैसे- पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी. तथा पौधे से पौधे की 20-25 सेमी. रखना चाहिए तथा पौध को रोपित सायंकाल में ही करें तथा साथ ही पानी दें तथा पौधों को रोपित करने के लिये जब उखाड़े तब पहले ही हल्की सिंचाई कर लें जिससे पौधों की जड़ों को क्षति ना पहुंचे ।
सिंचाई
सर्वप्रथम पौध रोपने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए तथा अन्य सिंचाई अवश्यकतानुसार करनी चाहिए क्योंकि पत्तेदार सब्जी होने से अधिक पानी की आवश्यकता होती है । इस प्रकार से 6-7 दिन के बाद सिंचाई करते रहना चाहिए ।
निकाई–गुड़ाई
प्रत्येक सिंचाई से फसल में कुछ जंगली पौधे उग आते हैं लेकिन प्रथम सिंचाई के बाद अधिक उगते हैं । इनको निकालने हेतु एक-दो गुड़ाई करनी जरूरी होती हैं जिससे पौधों में मिट्टी का वायु-संचार बना रहे तथा पौधे स्वस्थ रहें । इस प्रकार से जंगली घास व अन्य खरपतवारों को भी नष्ट कर दिया जाता है तथा इसी समय कोई पौधा खराब या मर गया हो तो दूसरा लगा देना चाहिए ।
पत्तों की तुड़ाई
जब पत्ते बड़े तोड़ने लायक हो जायें तो पहले बाहर या नीचे के पत्तों को तोड़ना चाहिए । पत्तों को तोड़ते समय ध्यान रहे कि पत्तों को तेज चाकू से काटना सुविधाजनक रहता है तथा इन पत्तों को एकत्र करके बंडल बना देते हैं जिन्हें बाजार में बिक्री हेतु भेज दिया जाता है । इस प्रकार से एक पौधे पर कई बार पत्तियां लगती हैं तथा एक सप्ताह में 2-3 बार तुड़ाई करना चाहिए ।
उपज
स्विस-चार्ड की पत्तियां प्रति पौधा 400 ग्राम तथा प्रति हैक्टर 150-200 क्विंटल उपज प्राप्त होती है ।
बीमारियां एंव कीट नियन्त्रण
इस फसल में अधिक बीमारी नहीं लगती । आरम्भ अवस्था में उखटा (Wilt) व पौध सड़न की बीमारी लगती लगती है । इनके नियन्त्रण हेतु फफूंदीनाशक दवा बेवस्टीन छिड़का जाता है |
कीटों में अधिकतर मौसम बदलने पर एफिड या चेचा, माहू छोटे कीट अधिक लगते हैं । नियन्त्रण हेतु नुवान, एण्डोसल्फान या मेटासिस्टॉक्स का 1% का घोल बनाकर छिड़काव करने से नियन्त्रण हो जाता है ।
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