गरम मसालों और औषधि के रूप में प्रयुक्त दालचीनी सिन्नेमोमम ज़ाइलैनिकम ब्राइन. (Cinnamomum zeylanicum Breyn.) नामक पेड़ की छालका नाम है जिसे अंग्रेजी में ‘कैशिया बार्क’ का वृक्ष कहा जाता है। यह सदाबहार पेड़ लौरेसिई वंश की अन्य प्रमुख प्रजातियों के पेड़ों के समान श्रीलंका, भारत, पूर्वी द्वीप तथा चीन इत्यादि देशों में साधारणतया सुलभ है। इस प्रजाति की अन्य जातियों, यथा सी. ऑब्ट्यूसिफ़ोलियम नीस, भेद कैसिया पी. एवं ई. तथा भेद लौरिरी पी. एंव ई. (C. obtusifolium Nees var. cassia Perrot and Eberhardt as also var. Ioureirii P. and E.) तथा सी. तमाल नीस एवं एबर्म. (C. tamala Nees & Eberm) का भी उपयोग छाल निकालने तथा उसका सौगंधिक तेल बनाने के लिए किया जाता है। इन जातियों के पेड़ भारत में पूर्वी हिमालय के इलाकों, असम, सिक्किम तथा खासी और जैंतिया की पहाड़ियों में ९०० से लेकर २,५०० मीटर तक की ऊँचाई तक पाए जाते हैं।
गरम मसालों में दालचीनी का उपयोग भारत में हजारों वर्षों से होता आ रहा है। इसका वर्णन संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में भी प्राप्त होता है। इतिहास के अध्ययन से भी ज्ञात होता है कि भारत से इसका निर्यत अरब, मिस्र, ग्रीस, इटली और यूरोप के सभी देशों में होता था। बाइबिल में भी इसका उल्लेख है।
दालचीनी की खेती :-
- दालचीनी की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- दालचीनी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसके आलावा पोषक तत्व से भरपूर बलुई मिटटी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |
दालचीनी की किस्म :- - i. कोंकण तेज़ yercaud -1
ii. नवश्री
iii. nithyashree
आदि किस्मों की व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है | नवश्री नामक किस्म से हमे अच्छी उपज की प्राप्ति होती है | इस किस्म से हमें 4 साल में 56 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपज की प्राप्ति होती है | इसके आलावा हमे 73 % छाल , oleoresin की 8 % और पत्ती से 2. 8 % तेल की प्राप्ति होती है | इस किस्म से हमे अच्छी गुणवता वाली उपज मिलती है | भारत में दालचीनी की नवश्री किस्म की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है |
- प्रचार :- इसका प्रसार कलमों और हवा परतों के मध्यम से किया जा रहा है |
- नर्सरी बनाने का समय :- भारत के पश्चिमी घाट में दालचीनी के फूल और फल निकलने का समय जनवरी से अगस्त का होता है | फलों को पेड़ से इक्कठा कर लिया जाता है इसके बाद बीजों को निकाला जाता है | बीजों को साफ़ करके बोया जाता है |इन बीजों को पोलीथीन में में बोया जाता है | पोलीथीन में रेत मिटटी और गोबर के मिश्रण को भर दिया जाता है | इसके बाद ह्क्ली सी सिंचाई करके बीजों को बोया जाता है | इसमें नियमित रूप से पानी दिया जाना चाहिए | दालचीनी के बीज 15 से २० दिन के अंदर अंकुरित होने लगते है | इसके पोलिबैग को छाया में रखना चाहिए |
- दालचीनी पेड़ की खेती :- दालचीनी के पौध लगाने के लिए 50 *50* 50 के आकार का गड्डा खोद लें | एक गड्डे से दुसरे गड्डे के बीच की दुरी कम से कम 3 मीटर की होनी चाहिए | पौध को बोने से पहले गड्डे में सड़ी हुई गोबर की खाद और मिटटी के मिश्रण को भर दें | इसके बाद पौध लगायें | एक गड्डे में लगभग 4 या 5 अंकुरित पौध लगायें | जब तक पौध भूमि में पूरी तरह से जम नही जाते तब तक उन्हें छाया में ही रखे |
- खरपतवार को रोकने के लिए :- दालचीनी की रोपाई के बाद मिटटी के आस – पास हल्की निराई करनी चाहिए |
- दालचीनी की फसल में उर्वरक का प्रयोग :- इसकी फसल में पहले साल में २० से 25 ग्राम यूरिया २० से 25 ग्राम अधिभास्विए और 50 ग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए | इन उर्वरक की मात्रा को मई – जून और सितम्बर – अक्तूबर के महीने में दो बराबर मात्रा में बाँटकर प्रयोग करना चाहिए |
- दालचीनी की फसल में सिंचाई :- जैसा की हम जानते है कि दालचीनी एक वर्षा आधारित फसल है | इसके लिए कम से कम 200 से 250 सेंटीमीटर की वर्षा का होना अति आवश्यक है | दालचीनी की पहले २ या 3 साल में सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए | गर्मियों के मौसम में इसकी फसल में सिंचाई समय – समय पर करनी चाहिए | इससे भूमि में नमी बनी रहती है | क्योकि भूमि में नमी का स्तर पौधे की विकास पर आधारित होती है |
- प्रबंधन :- दालचीनी के दो साल पुराने पौधे को 15 सेंटीमीटर स्टंप की ऊंचाई से जून या जुलाई के महीने में काटा जाता है | इसके बाद मुख्य तने पक्ष शूटिंग का एक गुच्छा पैदा करता है | लगभग 4 साल के बाद फसल को छिलने के लिए उपयुक्त माना जाता है | इसकी फसल छिलने का कार्य चौथे और पांचवे साल में किया जाता है | कटाई के काम के लिए सितम्बर से नवम्बर का महिना उचित होता है | थोड़ी मोटी और भूरे रंग के दालचीनी की कटाई करनी चाहिए | इसकी कटाई के लिए तेज़ धार वाले चाकू का उपयोग करना चाहिए | इसकी मदद से पेड़ में से छाल को आसानी से अलग कर लिया जाता है | इसके बाद इसे आगे पोस्ट हार्वेस्ट के लिए पैक हॉउस में भेजा जाता है |
दालचीनी के फायदे :-
- यह न केवल स्वाद को बढाने के काम आता है बल्कि इससे कई सेहतबर्धक उत्पादों को बनाया जाता है। इसका प्रयोग न केवल भारत मे बल्कि विदेशों में भी मसालेदार कैंडी बनाने के लिए होता है। दालचीनी का पूरा पौधा ही औषधिय गुणों से भरा हुआ है। दालचीनी पत्ती के तेल के लिए मच्छर के लार्वा को मारने में बहुत प्रभावी होना पाया गया है।
- शहद और दालचीनी के मिश्रण में मानव शरीर के अनेकों रोगों का निवारण करने की अद्भुत शक्ति है। दुनियां के करीब सभी देशों में शहद पैदा होता है।
- आज कल की सबसे बड़ी प्रॉब्लम गुप्त रोग बन चुकी है। ब्लाडर इन्फ़ेक्शन होने पर दो बडे चम्मच दालचीनी का पावडर और एक बडा चम्मच शहद मिलाकर गरम पानी केदेने से मूत्रपथ के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
- आज कल बुजुर्गों यहाँ तक कि बच्चों ने दर्द एक आम बात बन चुकी है जिन्हें जोड़ों के दर्द की समस्या हो, उन्हें हर दिन सुबह आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को एक बड़े चम्मच शहद में मिला कर सेवन करने से बहुत जल्दी फायदा होता है।
- दांत हमारे आकर्षण का मुख्य केंद्र होती है किंतु हम अपने खान पान पर ध्यान नही दे पाते है जिससे दांतों में कीड़े लग जाते है। दांत में कीड़ा लगने, या दर्द होने पर दालचीनी के तिेल में भीगी रूई का फाहा लगाने से आराम मिलता है।
- बुजुर्गों को दालचीनी के तेल की कुछ बूंदें कान में डालने से कम सुनाई देने की समस्या से छुटकारा मिलता है।
- दालचीनी से मुँह के बदबू को भी दूर किया जा सकता है और इससे मसूड़े भी मजबुत होते है।
- कभी-कभी कंधे में दर्द होता है। दालचीनी का प्रयोग करने से कंधे का दर्द ठीक हो जाता है।