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नर्सरी में मौसमी फूलों के पौधे तैयार करने की उन्नत तकनीक

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
February 21, 2019
in हिन्दी
1
नर्सरी में मौसमी फूलों के पौधे तैयार करने की उन्नत तकनीक
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मौसमी फूलों की खेती की तैयारी :

फूल वाले पौधों को नर्सरी में लगाकर फिर दूसरे स्थानों में लगाया जाता है। छोटे गमलों, लकड़ी के छोटे बक्सों, रास्तों के किनारों पर, छोटी क्यारियों में तथा लोन के बीच में इन पौधों को लगाया जाता है।

मिट्टी :

पुष्प पौधों को को सदैव रेतीली मिट्टी (बलुई दोमट) में सही तरीके से लगाया जा सकता है। रेतीली मिटटी नर्सरी (रोपण)के लिए उपयुक्त रहती है। वायु संचारित, भुरभुरी और उपजाऊ मिट्टी होनी चाहिए। उत्तम जल निकास प्रबंधन होना चाहिए। अच्छी पक्की हुई कम्पोस्ट खाद होनी चाहिए।

रोपण (नर्सरी) की तैयारी :

एक महीने पहले रोपण की मिट्टी को लगभग 5 से.मी. गहराई तक खोद लेना चाहिए। प्रति 16 वर्ग मीटर की क्यारी में लगभग 6 किलोग्राम बारीक़ पक्का हुआ गोबर का खाद तथा पकी पत्तियों की खाद बराबर मात्राओं में  मिला दिया जाता हैं। बरसात के दिनों में रोपण क्यारी को समतल भूमि से 15-20 सेमी. तक ऊंचा रखा जाता हैं। क्यारी को एक लम्बे लकड़ी के तख्ते से मुलायम सतह बना देते हैं।

बीज बोना :

इसके पश्चात बीजों को पंक्तियों में 10-15  सेमी. की दुरी पर बो दिया जाता हैं।बीज की गहराई बीज के आकार पर निर्भर करती हैं। छोटे बीजों को साधारणतया उनके आकार से दुगुनी गहराई पर बो दिया जाता हैं। छोटे बीजों के साथ 30 या 40 गुनी मिट्टी मिलाई जाती हैं ताकि उगने के पश्चात पौध घनी न हो जाए। घनी पौध कमजोर हो जाती हैं जब पौधे नर्सरी में 10-15 सेमी. के हो जाते हैं तभी उनका प्रतिरोपण करते हैं।

सामान्तया पौधों का प्रतिरोपण सांयकाल में करते हैं एवं उनके बाद सिंचाई कर देते हैं। लम्बे पौधे के लिए पंक्ति से पंक्ति की दुरी 45 सेमी. तथा छोटे पौधों के लिए 15-20 सेमी. तक रखी जाती हैं। पौधों की सिंचाई के समय कभी-कभी 1% यूरिया का घोल देने से बड़ा लाभ होता हैं। क्यारियों की निराई-गुड़ाई लगातार करते रहना चाहिए। इससे मिट्टी के वायु संचरण में भी सुविधा होती हैं। बड़े पौधों को बल देने के लिए लकड़ी लगा देते हैं, जिक्से कारण पौधे हवा से गिरते नहीं हैं।

बीजोपचार :

बोने से पहले बीजों को किसी कॉपर फंजीसाइट (ताम्बा युक्त कवकमार) या अग्रोसिन जी.एन. से उपचारित करना चाहिए। इसकी मात्रा 30 ग्राम कवकमार प्रति 4.5 किलो बीज के लिए पर्याप्त हैं। बोने के पश्चात झारे से प्रतिदिन पानी देते हैं तथा क्यारी को छड़ियों से ढक देते हैं अन्यथा नई पौध को चिड़िया खा जाती हैं। अंकुरण के समय यदि पौधे घने हो तो बिच-बिच में पौधे उखाड़कर विरलन (थिनिंग) कर देते हैं।

रोपणी में शिशु पौधे की देखभाल :

शिशु पौधे बहुत ही कोमल होते हैं इन आर्द्रता, उष्णता व तापमान का काफी प्रभाव पड़ता हैं। कभी-कभी ज्यादा पानी देने से क्यारी नम हो जाती हैं, जिसके कारण कई कवक (फंजाई) अपना आक्रमण कर देते हैं। ऐसी स्थिति में शिशु पौधे में रोग लगना प्रारम्भ हो जा हैं एवं पौधे गलने शुरू हो जाते हैं।

पौधों को गलने से बचाने के लिए शिशु पौधों में झारे से पानी देते हैं एवं 3:3:50 बोर्डो मिक्सचर का 0.5% से छिड़काव कर शिशु पौधों की सड़न रोकी जा सकती हैं। रोपणी में अधिकतर आर्द्रगलन (डम्पिंग ऑफ़) बीमारी लग जाती हैं जो पौधों को गला देती हैं। इसके लिए हम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (50%) या कॉपर ऑक्साइड या अन्य कॉपर फंजीसाइड काम में लेते हैं।

भूमि में क्यारी बनाकर पौधे रोपण करना :

पौधे लगाने के करीब 1 से डेढ़ महीने पहले क्यारी बना लेते हैं। उनमे लगभग 1 किलो पका हुआ गोबर या पत्तियों की खाद प्रति १६ वर्ग फुट में मिला देते हैं एवं लकड़ी के तख्ते की सहायता से समतल बना देते हैं। फूलों को गमलो में लगाने के लिए पहले गमले के पेंदे में छेद कर देते हैं उसमे गमले का टुकड़ा या पत्थर का टुकड़ा लगाने के बाद उसमे पकी हुई गोबर की खाद हल्की मिट्टी, छनी हुई राख व छोटे कंकड़ भर देते हैं। गमले को 8-10 सेमी. खली रखा जाता हैं।

प्रत्येक ऋतू में 450 ग्राम रासायनिक खाद (4:12:4) नाइट्रोजन:फास्फोरस:पोटेशियम प्रति 2 वर्गमीटर में देते हैं। पौधों का लगाने से पहले अपने मस्तिष्क में क्यारियों की डिजाइन का अवश्य ध्यान रखिये। मुख्यतः क्यारियों में रंग एवं ऊंचाई को ध्यान में रखकर पौधे उगाये जाते हैं। विभिन्न रंग वाले पुष्प पौधे एक रंग वाले पुष्प पौधों के सामने लगाए जाते हैं एवं छोटे पौधे सामने एवं ऊँचे पौधे उनके पीछे लगाते हैं। एक वर्षीय पौधों की पौध तैयार करके उनकी रोपाई करने पर संतोष नहीं कर लेना चाहिए, बल्कि उनकी देखभाल अच्छे ढंग और आवश्यक कार्य करने चाहिए। जिससे मनवांछित आकार के सुन्दर पुष्प प्राप्त किये जा सकते हैं।

सिंचाई :

एकवर्षीय पौधों की उचित सिंचाई करना बहुत जरूरी हैं। यदि उन्हें समयानुसार पानी नहीं दिया गया तो उनका समुचित विकास संभव नहीं हैं। आमतौर पर उनकी सिंचाई भूमि की किस्म, जलवायु और उगाये जाने वाले पौधों के ऊपर निर्भर करती हैं रेतीली भूमि में दोमट भूमि की तुलना में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। उसी प्रकार चिकनी मिट्टी में बहुत कम सिंचाई करनी चाहिए।

वर्षा ऋतू में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं। यदि काफी समय तक वर्षा न हो, तो उस स्थिति में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिये। शरदकालीन मौसमी फूलों के लिए ग्रीष्मकालीन फूलों की तुलना में कम सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। ग्रीष्म ऋतू में 4-5 दिन के अन्तर पर पानी देने की आवश्यकता होती हैं, जबकि शरद ऋतू में 8-10 दिन के अंतर् पर आवश्यकता होती हैं।

खरपतवार नियंत्रण :

एक वर्षीय पौधे के साथ विभिन्न प्रकार के खरपतवार उग आते हैं जो भूमि से नमि और पोषक तत्व लेते रहते हैं, जिसके कारण पौधों के विकास और वृद्धि दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं। अतः उनकी रोकथाम के लिए खुर्पी की सहायता से घास-फुस निकालते रहना अनिवार्य हो जाता हैं। गुड़ाई करते समय इस बात का ध्यान रखें की खुर्पी अधिक गहरी न चलाये अन्यथा जड़ों के कटने का भय रहता हैं।

खाद और उर्वरक :

पौधों की उचित वृद्धि के लिए यह आवश्यक हैं की पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व दिए जाये। पोषक तत्वों की मात्रा भूमि, जलवायु और पौधों की किस्म पर निर्भर करती हैं। निम्न उर्वरकों का मिश्रण उपयुक्त रहता हैं। यूरिया 10 किलो, सिंगल सुपर फास्फेट 200 किलो, म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 75 किलो आमतौर पर उर्वरक का 10 किलो मिश्रण 1000 वर्ग मीटर की दर से डालकर भली-भाती भूमि में मिला देना चाहिए। भूमि मर पर्याप्त नमी होनी चाहिये जब उर्वरक डालें।

तरल खाद :

परीक्षणों द्वारा पता चलता हैं की पौधों की उचित बढ़वार और उत्तम किस्मों के फूलो के उत्पादन के लिए तरल खाद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। गोबर की खाद और पानी का मिश्रण और उसमे थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन वाला उर्वरक (अमोनिया सल्फेट) डाल दिया जाये तो उसमे अच्छे परिणाम मिलते हैं तरल खाद एक सप्ताह के अन्तर में 2-3 बार देनी चाहिए। 0.1% यूरिया के घोल का पौधों के ऊपर छिड़काव भी उपयोगी हैं।

कीट एवं व्याधियां :

कीट

एकवर्षीय पौधों पर कई प्रकार के कीड़ों मकोड़ों का प्रकोप होता हैं, जिनमे निम्नलिखित प्रमुख हैं।

दीमक

नियंत्रण के लिए 5 लिटर लिण्डेन 20 ई.सी. प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ दीजिये।

मोयला

इसके दिखाई देने पर 1 लीटर मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. या 250 मि.ली. फास्फोमिडान 100 ई.सी. या 1 लीटर डाइमिथाइट 30 ई.सी. का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिन के अन्तर पर इस छिड़काव को दोहराये।

पर्ण खनक (लीफ माइनर)

इनका प्रकोप रोपाई के 8-10 दिन में ही प्रारम्भ हो जाता हैं, अतः मोनोक्रोटोफॉस (40 ई.सी.) 375 मि.ली. लीटर/हेक्टेयर के हिसाब से छिड़के।

आरा मक्खी

पैराथियान 2%/हेक्टेयर प्रातः या सायकल छिड़के।

व्याधियां

चूर्णी फफूंद या छाछिया

इसकी रोकथाम हेतु ढाई किलोग्राम गंधक चूर्ण का घोल या 0.1% केराथेन का छिड़काव करें।

पत्तियों पर धब्बे (लीफ स्पॉट)

यह रोग आलटरनेरिया व सरकोस्फेरा के कारण होता हैं। इसके उपचार हेतु डायथेन एम.-45 दवा 2 किलो 300-500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

जड़ गलन रोग

कार्बेन्डाजिम 0.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज को उपचारित कर बोयें।

झुलसा

इस प्रकोप के लक्षण दिखाई देते ही 2 किलो मेंकोजेब या केप्टफॉल डेढ़ किलो या जाइनेब ढाई किलो प्रति हेक्टेयर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

मुरझान

रोग रोधी किस्मे बोये, 3 ग्राम थाइरम से प्रति किलो बीज उपचारित करके बोने  से इसका आंशिक संक्रमण रोका जा सकता हैं।

विषाणु रोग

यह रोग किट द्वारा फैलता हैं। अतः 250 मि.ली. फास्फोमिडॉन 100 ई.सी. या 1 लीटर डाइमिथोईट 30 ई.सी. का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दे।

गठिया रोग

पौध रोपण के समय फ्यूराडॉन 2 किलो ग्राम स्क्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलाकर डालें।

 

 

इस सत्र के लिए हम किसानों की सुविधा के लिए, यह जानकारी अन्य किसानों की सुविधा के लिए लेख आप krushisamrat1@gmail.com ई-मेल आईडी या 8888122799 नंबर पर भेज सकते है, आपके द्वारा सबमिट किया गया लेख / जानकारी आपके नाम और पते के साथ प्रकाशित की जाएगी।

Tags: Advanced techniques for preparing seasonal flowering plants in nurseryनर्सरी में मौसमी फूलों के पौधे तैयार करने की उन्नत तकनीक
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