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जीरे की उन्नत खेती

Team Krushi Samrat by Team Krushi Samrat
January 10, 2019
in हिन्दी
0
जीरे की उन्नत खेती
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जीरा मसाले वाली मुख्य बीजीय फसल हैl देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात व राजस्थान राज्य में उगाया जाता हैl राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 पतिशत जीरा पैदा होता है लेकिन इसकी औसत उपज (380 कि.ग्रा.प्रति हे.)पड़ौसी राज्य गुजरात (550 कि.ग्रा.प्रति हे.)कि अपेक्षा काफी कम हैl उन्नत तकनीकों के प्रयोग द्वारा जीरे की वर्तमान उपज को 25-50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता हैl

 

किस्म

 

किस्म पकने की अवधि (दिनों में) औसत उपज(कु. प्रति.हे.) विशेषतायें
आर  जेड -19 120-125 9-11 उखटा, छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है l
आर जेड-209 120-125 7-8 छाछिया झुलसा रोग कम लगता हैl दाने मोटे होते हैंI
जी सी-4 105-110 7-9 उखटा बीमारी के प्रति सहनशीलl बीज बड़े आकार के l
आर  जेड-223 110-115 6-8 यह उखटा बीमारी के प्रति रोधक तथा बीज में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत

 

भूमि एव उसकी तैयारी

जीरे की फसल बलुई दोमट तथा दोमट भूमि अच्छी होती हैl खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहियेl जीरे की फसल के लिए एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करने के बाद एक क्रॉस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये तथा इसके पश्चात एक जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर मिटटी भुरभुरी बना देनी चाहियेl

 

बीज एव बुवाई

जीरे की बुवाई के समय तापमान 24 से 28° सेंटीग्रेड होना चाहिये तथा वनस्पतिक वृद्धि के समय 20 से 25° सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता हैl जीरे की बुवाई 1 से 25 नवंबर के मध्य कर देनी चाहियेl जीरे की किसान अधिकतर छिड़काव विधि द्वारा करते हैं लेकिन कल्टीवेटर से 30 से. मी. के अन्तराल पर पंक्तियां बनाकर उससे बुवाई करना अच्छा रहता हैl एक हेक्टयर क्षेत्र के लिए 12 कि. ग्रा . बीज पर्याप्त रहता हैl ध्यान रहे जीरे का बीज 1.5 से.मी. से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिये l

खाद एव उर्वरक

जीरे कि फसल के लिए खाद उर्वरकों कि मात्रा भूमि जाँच करने के बाद देनी चाहियेl सामान्य परिस्थितियों में जीरे की फसल के लिए पहले 5 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद अन्तिम जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहियेl इसके बाद बुवाई के समय 65 किलो डीएपी व 9 किलो यूरिया  मिलाकर खेत में देना चाहियेl प्रथम सिंचाई पर 33 किलो यूरिया प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चहिये l

 

सिंचाई

जीरे की बुवाई के तुरन्त पश्चात एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहियेl ध्यान रहे तेज भाव के कारण बीज अस्त व्यस्त हो सकते हैंl दूसरी सिंचाई 6-7 दिन पश्चात करनी चाहियेl इस सिंचाई द्वारा फसल का अंकुरण अच्छा होता है तथा पपड़ी का अंकुरण पर कम असर पड़ता हैl इसके बाद यदि आवश्यकता हो तो 6-7 दिन पश्चात हल्की सिंचाई करनी चाहिये अन्यथा 20 दिन के अन्तराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहियेl ध्यान रहे दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई न करेंl अन्यथा बीज हल्का बनता हैl सिंचाई के लिए फव्वारा विधि का प्रयोग करना उत्तम है l

 

खरपतवार नियंत्रण

जीरे की  फसल में खरपतवारों का अधिक प्रकोप होता है क्योंकि प्रांरभिक अवस्था में जीरे की बढ़वार हो जाती है तथा फसल को नुकसान होता हैI जीरे में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के समय दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन(स्टोम्प) नामक खरपत वार नाशी की बाजार में उपलब्ध 3.3 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहियेI इसके उपरान्त जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहियेI यदि मजदूरों की समस्या हो तो आक्सीडाईजारिल (राफ्ट) नामक खरपतवार-नाशी की बाजार में उपलब्ध 750 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये I

 

फसल चक्र

एक ही खेत में लगातार तीन वर्षो तक जीरे की फसल नहीं लेनी चाहियेI अन्यथा उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है I अतः उचित फसल चक्र अपनाना बहुत ही आवश्यक हैI बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं -बाजरा- जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र का प्रयोग लिया जा सकता है I

 

पौध संरक्षण

चैंपा या एफिड

इस किट का सबसे अधिक प्रकोप फूल आने की अवस्था पर होता हैI यह किट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुचांता है इस किट के नियंत्रण हेतु एमिडाक्लोप्रिड की 0.5 लीटर या मैलाथियान 50 ई.सी. की एक लीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से 500  लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये ई आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव करना चहिये i

 

दीमक

दीमक जीरे के पौधों की जड़ें काटकर फसल को बहुत नुकसान पहुँचाती है। दीमक की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर क्लोरोपाइरीफॉस या क्योनालफॉस की 20 -25 कि.ग्रा.मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से भुरकाव कर देनी चाहियेl खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफॉस कि 2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से सिंचाई के साथ देनी चाहियेl इसके अतिरिक्त क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मि.ली.मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिये l

 

उखटा रोग

इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैं तथा यह आरम्भिक अवस्था में अधिक होता है लेकिन किसी भी अवस्था में यह रोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता हैl इसकी रोकथाम के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा की 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचरित करके बोना चाहियेl प्रमाणित बीज का प्रयोग करेंl खेत में ग्रीष्म ऋतु में जुताई करनी चाहिये तथा एक ही खेत में लगातार जीरे की फसल नहीं उगानी चाहिएl खेत में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.50 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा कि 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिये तथा हल्की सिंचाई करनी चाहिये l

 

झुलसा

यह रोग फसल में फूल आने के पश्चात बादल होने पर लगता है l इस रोग के कारण पौधों का ऊपरी भाग झुक जाता है तथा पतियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते है l इस रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये l

 

छाछया रोग

इस रोग के कारण पौधे पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता है तथा धीरे -धीरे पूरा पौधा सफ़ेद पाउडर से ढक जाता है एवं बीज नहीं बनते l बीमारी के नियंत्रण हेतु गन्धक का चूर्ण 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से भुरकाव करना चाहिये या एक लीटर कैराथेन प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहियेl जीरे की फसल में कीट एवं बीमारियों के लगने की अधिक संभावना रहती है फसल में बीमारियों एवं कीटों द्वारा सबसे अधिक नुकसान होता है l इस नुकसान से बचने के लिए जीरे में निम्नलिखित तीन छिड़काव करने चाहिये l

  1. प्रथम छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन पश्चात मैन्कोजेब 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर करें l
  2. दूसरा छिड़काव बुवाई के 45 -50 दिन पश्चात मैन्कोजेब 2 ग्राम, इमिडाक्लोप्रिड 50 मि.ली. तथा घुलनशील गंधक 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये l इसके अतिरिक्त यदि किसी बीमारी या कीट का अधिक प्रकोप हो तो उसको नियंत्रण करने के लिए संबंधित रोगनाशक या कीटनाशक का प्रयोग करें l
  3. तीसरे छिड़काव में मेक्नोजेब 2 ग्राम, एमिडाकलप्रिड 1मि.ली. व 2 ग्राम घुलनशील गंधक प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 60-70 दिन पश्चात कर देना चाहिये l

 

बीज उत्पादन

जीरे का बीज उत्पादन करने हेतु खेत का चयन महत्पूर्ण होता हैl जीरे के लिए ऐसे खेत का चयन करना चाहिए जिसमें पिछले दो वर्षो से जीरे की खेती न की गई होl भूमि में जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिये l जीरे के बीज उत्पादन के लिए चुने खेत के चारो तरफ 10 से 20 मीटर की दुरी तक किसी खेत में जीरे की फसल नहीं होनी चाहियेl बीज उत्पादन के लिए सभी आवश्यक कृषि क्रियायें जैसे खेत की तैयारी, बुवाई के लिए अच्छा बीज एवं उन्नत विधि द्वारा बुवाई, खाद एवं उर्वरकों का उचित नियंत्रण आवश्यक हैl अवांछनीय पौधों को फूल बनने एवं फसल की कटाई से पहले निकलना आवश्यक हैl फसल जब अच्छी प्रकार पक जाये तो खेत के चारोंका लगभग 10 मीटर खेत छोड़ते हुए लाटा काट कर अलग सुखाना चाहिये तथा दाने को अलग निकाल कर अलग उसे अच्छी प्रकार सुखाना चाहियेI दाने में 8 -9 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहियेI बीजों का ग्रेडिंग करने के बाद उसे कीट एवं कवकनाशी रसायनों से उपचारित कर साफ बोरे या लोहे की टंकी में भरकर सुरक्षित स्थान पर भंडारित कर दिया जाना चाहियेl इस प्रकार उत्पादित बीज को अगले वर्ष के लिए उपयोग किया जा सकता है l

 

कटाई एवं गहाई

सामान्य रूप से जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाये तथा फसल पूरी पक जाये तो तुरन्त कटाई कर लेनी चाहियl पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मँड़ाई कर दाना अलग कर लेना चाहियेl दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर साफ बोरों में भंडारित कर लिया जाना चाहिये।

 

 

उपज एवं आर्थिक लाभ

उन्नत विधियों के उपयोग करने पर उपयोग करने पर जीरे की औसत उपज 7-8 कुन्तल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती हैl जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हज़ार रुपये प्रति हेक्टयर का खर्च आता हैI जीरे के दाने का 100 रुपये प्रति किलो भाव रहना पर 40 से 45 हज़ार रुपये प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है I

 

इस सत्र के लिए हम किसानों की सुविधा के लिए, यह जानकारी अन्य किसानों की सुविधा के लिए लेख आप krushisamrat1@gmail.com ई-मेल आईडी या 8888122799 नंबर पर भेज सकते है, आपके द्वारा सबमिट किया गया लेख / जानकारी आपके नाम और पते के साथ प्रकाशित की जाएगी।

 

Tags: Advanced cultivation of cuminजीरे की उन्नत खेती
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