कपास एक नकदी फ़सल है। इससे रुई तैयार की जाती है। भारत में कपास को ‘सफ़ेद सोना’ भी कहा जाता है। लम्बे रेशे वाले कपास सबसे सर्वोत्तम प्रकार के होते हैं, जिसकी लम्बाई 5 सें.मी. से अधिक होती है। इससे उच्च कोटि का कपड़ा बनाया जाता है। तटीय क्षेत्रों में पैदा होने के कारण इसे ‘समुद्र द्वीपीय कपास’ भी कहते हैं। मध्य रेशे वाला कपास, जिसकी लम्बाई 3.5 से 5 सें.मी. तक होती है, ‘मिश्रित कपास’ कहलाता है। तीसरे प्रकार का कपास छोटे रेशे वाला होता है, जिसके रेशे की लम्बाई 3.5 सें.मी. तक होती है।
भूमि व खेत की तैयारी :
रेतीली, लूणी और सेम वाली भूमि को छोड़कर इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। जमीन अच्छी प्रकार से तैयार करने के लिए 3-4 जुताइयां पर्याप्त है । अधिक पैदावार लेने के लिये जुताई गहरी की जानी चाहिए । पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। खेत की अच्छी तैयारी के लिये दो बार हैरो या कल्टीवेटर से भी जुताई करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा लगायें।
बिजाई का समय:
कपास की बिजाई 15 अप्रैल से जून के पहले सप्ताह तक की जा सकती है। परन्तु मई का पूरा महीना कपास की बिजाई के लिए सर्वोत्तम है। बी.टी. कपास की बिजाई का सर्वोत्तम समय अप्रैल के तीसरे सप्ताह से लेकर मई के अंत तक है।
बीज मात्रा :
सामान्यतः उन्नत जातियों का 2.5 से 3.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन/डिलिन्टेड) तथा संकर एवं बीटी जातियों का 1.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन) प्रति हेक्टेयर की बुवाई के लिए उपयुक्त होता हैं।
बीज का उपचार :
बढ़िया परिणाम के लिये बिजाई से पहले बीज का निम्नलिखित दवाइयों से रोयें उतारे गये बीज का केवल 2 घण्टे तक ही उपचार करें : एमिसान 5 ग्राम, स्ट्रैप्टोसाईक्लिन 1 ग्राम, सक्सीनिक तेजाब 1 ग्राम, पानी 10 लीटर घोल में कपास के बीज डुबोकर उपचारित करें। जिन क्षेत्रों में दीमक की समस्या हो वहां उपर्युक्त उपचार के बाद बीज को थोड़ा सुखाकर 10 मि.ली. क्लोरपाईरीफास 20 ई.सी. व 10 मि.ली. पानी प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर थोड़ा-थोड़ा बीज पर छिड़कें व अच्छी तरह मिलाएं तथा बाद में 30-40 मिनट बीज को छाया में सुखा कर बिजाई करें। जड़ गलन की समस्या वाले क्षेत्रों में पीछे बताए गये उपचार के पहले बीज का 2 ग्राम बाविस्टिन प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से सूखा उपचार करें यानि बीज को फफूंदनाशक घोल से निकाल कर कुछ समय तक छाया में सुखा कर बाद में उपचार करें। यह उपचार 40-50 दिन तक ही फसल को बचा सकता है।
बिजाई का तरीका :
बीज को 4-5 सैं.मी. गहरा बोयें। कतार से कतार की दूरी 45-60 सैं.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 45-60 सैं.मी. रखें। संकर व बी.टी. कपास की बिजाई के लिए कतार से कतार की दूरी 90 सैं.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 90 सैं.मी. रखनी चाहिए (या) कतार से कतार की दूरी 120 सैं.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 60 सैं.मी. रखनी चाहिए। मध्य प्रदेश में संकर एवं बीटी जातियों में कतार से कतार एवं पौधे से पौधे के बीच की दूरी क्रमशः 90 से 120 सेमी. एवं 60 से 90 सेमी रखी जाती हैं |
बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का महत्व :
भारत सरकार की अनुवांषिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी. ई.ए.सी.) की अनुशंसा के अनुसार कुल बीटी क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें (जो भी अधिक हो) मुख्य फसल के चारों उसी किस्म का नान बीटी वाला बीज लगाना (रिफ्यूजिया) लगाना अत्यंत आवष्यक हैं प्रत्येक बीटी किस्म के साथ उसका नान बीटी (120 ग्राम बीज) या अरहर का बीज उसी पैकेट के साथ आता हैं। बीटी किस्म के पौधों में बेसिलस थुरेनजेसिस नामक जीवाणु का जीन समाहित रहता जो कि एक विषैला प्रोटीन उत्पन्न करता हैं इस कारण इनमें डेन्डू छेदक कीटों से बचाव की क्षमता विकसित होती हैं। रिफ्यूजिया कतारे लगाने पर डेन्डू छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता हैं और यहाँ उनका नियंत्रण आसान होता हैं। यदि रिफ्यूजिया नहीं लगाते तो डेन्डू छेदक कीटों में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती हैं ऐसी स्थिति में बीटी किस्मों की सार्थकता नहीं रह जावेगी ।
कतारों की दिशा :
पूर्व से पश्चिम की दिशा में कतारों में बोई गई कपास उत्तर से दक्षिण दिशा में बोई गई कपास के मुकाबले अधिक पैदावार देती है। यह पैदावार बढ़ाने का एक अच्छा साधन है।
पौधों की छनाई करना :
बिजाई के दो-तीन सप्ताह बाद कतारों में पौधों के अनुशंसित की गयी दूरी पर करें फालतू रोगग्रस्त/कीट प्रभावित व कमजोर पौधे हों उन्हें निकाल दें। एक जगह पर एक ही पौधा रखें। पौधों की छंटाई पहली सिंचाई से पहले पूरी कर लेनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक :
यूरिया 150 किलोग्राम, सुपर फॉस्फेट 150 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम और जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए। सारा फास्फोरस व जिंक सल्फेट बिजाई के समय डालें यूरिया की आधी मात्रा बौकी आने (जुलाई-अन्त) के समय तथा आधी फूल आने के समय डालें। यदि कपास, गेहूँ के बाद बोई गई है या कम उपजाऊ जमीन में बोई गई है तो नाइट्रोजन वाली खाद की पहली आधी मात्रा पौधों को बिरला करते समय देने की बजाय बिजाई पर दें। संकर व बी. टी. किस्मों के लिए नत्रजन खाद तीन बराबर हिस्सों में बांट कर तीन बार डालें- बिजाई के समय, बौकी आने पर तथा फूल आने पर।
निराई तथा गुड़ाई :
खरपतवार के नियन्त्रण के लिए दो-तीन बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई से पहले करें। बाद में हर सिंचाई या वर्षा के बाद निराई-गुड़ाई करें।
खरपतवार नियंत्रण :
उगने से पहले स्टोम्प 30 (पैण्डीमिथालीन) का प्रयोग 2 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से करने पर खरपतवारों पर नियन्त्रण होता है।
सिंचाई :
सिंचाई की क्रांतिक अवस्थाएँ :
1. सिम्पोडिया, शाखाएँ निकलने की अवस्था एवं 45-50 दिन फूल पुड़ी बनने की अवस्था।
2. फूल एवं फल बनने की अवस्था 75-85 दिन
3. अधिकतम घेटों की अवस्था 95-105 दिन
4. घेरे वृद्धि एवं खुलने की अवस्था 115-125दिन
कपास की फसल की वर्षा के हिसाब से 3 से 4 बार सिंचाई करने की आवश्यकता पड़ती है। पहली सिंचाई जितनी देर से की जाए अच्छी है परन्तु फसल को नुकसान नहीं होना चाहिए। शेष सिंचाइयां 2 या 3 सप्ताह के अन्तर पर करनी चाहिएं। फूल और फल आते समय सिंचाई के अभाव में फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे फसल को बचाना चाहिए नहीं तो फल-फूल झड़ जायेंगे, जिससे उपज कम हो जायेगी। आखिरी सिंचाई एक-तिहाई टिण्डों के खुलते ही कर दें। इसके बाद कोई सिंचाई न करें।
चुनाई :
अच्छा भाव प्राप्त करने के लिए साफ व सूखा कपास चुनें। अमेरिकन कपास अक्तूबर के महीने में चुनने के लिये तैयार हो जाती है। चुनाई 15-20 दिन के अन्तर पर करें। देसी कपास सितम्बर के तीसरे सप्ताह में चुनने के लिये तैयार हो जाती है। इसकी चुनाई 8-10 दिन के अन्तर पर करें। इससे क्षति कम होती है। कपास का सूखे गोदामों में भण्डारण करें।
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